tag:blogger.com,1999:blog-13133644834739285372024-03-21T20:56:24.875-07:00सुबह बेदाग़ है।एक ख़्वाब.. एक कोशिश..Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.comBlogger35125tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-35624192479423605592018-11-23T15:35:00.001-08:002018-11-23T15:35:26.826-08:00अंत<p dir="ltr">'अंत' अपने आप में बड़ा हृदयविदारक शब्द है, साथ ही साथ इस शब्द से एक नकारात्मकता भी जुड़ी है. किसी प्रेमकहानी का अंत, पसंदीदा कविता का अंत, या जीवन का अंत, अंत हमेशा ही दिल तोड़ कर रख देता है. जिसकी शुरुआत सुखदायक होगी, उसके अंत का दुःखदायक होना निश्चित ही है.</p>
<p dir="ltr">जिन दिनों मैं कविता लिखा करता था, मैं कोशिश करता था कि अपनी हर कविता के अंत को उम्मीदों से भर दूँ. ऐसा नहीं था कि मैं ख़ुद उन दिनों उम्मीदों से भरा हुआ था या मेरे चारों ओर रौशनी थी. मैं नकारात्मकता के अँधेरे कुँए में बैठा था और मैं अपने ऊपर आसमान की ओर ताकने के बजाय दीवारों से सर टकराता था. पर मेरी 400 शब्दों की हताश कविता भी किसी के आ जाने की आस पर ख़त्म होती थी. शायद इसलिए कि इंतेज़ार कम दुःखदायक है अंत से. और शायद इसलिए कि मैं किसी और को उस कुएँ में नहीं धकेल सकता था, जिसने मेरी ज़िंदगी में अँधेरा किया था. मुझे अपने कविताओं की जिम्मेदारियों का एहसास था.</p>
<p dir="ltr">जिस दिन संसार के सारे कवि कविताएँ लिखना बंद कर देंगे, या जिस दिन उनके कविता लिखने पर रोक लगा दिया जाएगा, उस दिन भी कोई कहीं किसी वीराने में कविताएँ पढ़ेगा और अपने साथियों को सुनाएगा. कविताओं का यही महत्व है. कविताएँ इसीलिए अमर हैं. पर कविताएँ अकेली नहीं जीतीं. उनमें जीती हैं वो आवाज़ें जिन्हें कविताओं ने अनंत काल तक के लिए अपने भीतर समेट लिया होता है. वो आवाज़ें जिन्हें सुन कर आप सोचते हैं कि इस आशिक़ ने कितनी मोहब्बत की होगी अपने ज़माने में, या उस तानाशाह ने कितना ज़ुल्म ढ़ाया होगा अपने लोगों पर. जब तक कविताएँ सुनाई देंगी, ये आवाज़ें भी सुनाई देंगी. कविताओं के अंत का उम्मीदों से भरा होना इसीलिए जरूरी है. हारा हुआ व्यक्ति अगर कविताओं के अंत में भी हार जाएगा तो ये कविताओं की हार होगी. और इसीलिए जरूरी है कि हर कविता किसी उम्मीद पर अंत हो ताकि अंत-अंत तक किसी की हिम्मत न टूटे.</p>
<p dir="ltr">~ हिमांशु</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-27420911470434598582018-02-15T02:01:00.001-08:002018-02-15T02:54:02.714-08:00दुनिया भर तुम!<p dir="ltr">मैं<br>
दुनिया भर की<br>
औरतों से प्यार करने के बाद<br>
तुम्हारे पास आया हूँ</p>
<p dir="ltr">दुनिया भर की वो<br>
ख़ूबसूरत औरतें<br>
जिनको देख कर<br>
प्यार करने के अलावा<br>
किसी को कुछ ना सूझे<br>
जिनको देख कर<br>
किसी भी कवि की कल्पना<br>
प्रेम गीतों से भर जाए<br>
जिनको देख कर<br>
उनके प्रेम में<br>
तड़ीपार हो जाने की सज़ा<br>
भी मामूली जान पड़े</p>
<p dir="ltr">दुनिया भर की वो<br>
समझदार औरतें<br>
जिनसे ज़िरह कर<br>
बार-बार उनसे<br>
हार जाने का मन हो<br>
जिनके जीत का आसमान<br>
इतना बड़ा है कि<br>
उसे ढ़कने को<br>
नीला रंग कम पड़ जाए<br>
जिनके बातों की<br>
गहराई के आगे<br>
आंखों की गहराई वाली<br>
सारी कविताएँ ओछी लगने लगे</p>
<p dir="ltr">दुनिया भर की वो<br>
कमाल की औरतें<br>
जिन्हें इतना कुछ मिला<br>
कि वो ना भी मिले<br>
तो उनके आशिक़<br>
ग़म ना मनाए<br>
जिन्होंने इतना कुछ पाया<br>
कि उनकी चाह में<br>
ख़ुद भी खो जाएं<br>
तो अफ़सोस ना रहे<br>
जिनकी संघर्ष की कहानियों<br>
के आगे अपने सच्चे प्यार<br>
की दास्तान तक फ़ीकी लगे</p>
<p dir="ltr">दुनिया भर की वो<br>
बेवकूफ़ औरतें<br>
जिन्होंने इतना प्यार किया<br>
कि अपने प्रेमी की आँखों में<br>
झूठ नहीं पहचान सकीं<br>
जिन्होंने अपने इंतेज़ार की<br>
कोई समय-सीमा नहीं तय की<br>
अपने प्रेमी के छोड़ जाने के बाद<br>
जो प्यार में बिना शर्त,<br>
बिना सवाल, बिना सोचे<br>
अपने प्रेमी की बातों में आ गयीं</p>
<p dir="ltr">मैं<br>
दुनिया भर की<br>
अच्छी-बुरी औरतों<br>
से, अच्छे बुरे तरीकों से<br>
प्यार करने के बाद<br>
तुम्हारे पास आया हूँ<br>
बहुत कुछ जीत कर<br>
तुम्हारे आगे सब कुछ<br>
हार जाने आया हूँ<br>
अपने होशोहवास,<br>
अपनी सद्बुद्धि,<br>
अपनी सारी कमाई,<br>
सब कुछ खो देने आया हूँ</p>
<p dir="ltr">तुम्हारा<br>
मेरे सामने होना<br>
मेरे लिए दुनिया भर के<br>
रुक जाने जैसा होता है<br>
तुम्हारी काली आँखों<br>
का मुझे देखना, इस दुनिया<br>
से मेरी सारी शिकायतें<br>
दूर कर देता है<br>
उस एक क्षण में<br>
जब सब जस का तस<br>
रुका होता है<br>
मैं दुनिया भर की<br>
औरतों से कहता हूँ कि<br>
मैंने तुम सबसे<br>
प्यार किया<br>
मगर ख़ाक में मुझे<br>
मेरे सामने खड़ी<br>
इस औरत के प्यार<br>
में मिलना है<br>
मुझे इस सूरज <br>
की धूप में<br>
पिघलना है</p>
<p dir="ltr">दुनिया भर की<br>
वो सारी औरतें<br>
मुझे तुम में<br>
दिखती हैं और<br>
मैं, तुम्हारे पास<br>
तुम्हारी आँखों में<br>
अपने लिए प्यार देखने आया हूँ</p>
<p dir="ltr">~ हिमांशु</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-48767741420966452822018-02-14T02:44:00.001-08:002018-02-14T02:44:29.235-08:00रात!<p dir="ltr">जैसे रात <br>
दोगुनी कर देती है<br>
दर्द, पीड़ा, तकलीफें<br>
तन्हाईयाँ, अकेलापन<br>
रुकावटें, मुश्किलें, मुसीबतें</p>
<p dir="ltr">ठीक उसी तरह<br>
हर रात दुगना हो जाता है<br>
तुम्हारे लिए मेरा प्यार<br>
मेरे दिल में तुम्हारी हसरत<br>
और मेरे जीवन में तुम्हारी जरूरत</p>
<p dir="ltr">~ हिमांशु </p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-67109432244653139672018-02-14T02:36:00.001-08:002018-02-14T02:36:01.506-08:00 प्रेम की कविता!<p dir="ltr">तुम्हारा प्रेम<br>
मेरे लिए<br>
कविताएँ पढ़ने का बहाना था</p>
<p dir="ltr">सुबह से प्रेम की<br>
बीसों कविताएँ<br>
पढ़ चुका हूँ</p>
<p dir="ltr">तुम्हारे प्रेम में डूबते-डूबते<br>
कविताओं के सहारे तैरना<br>
बहाना नहीं, आदत हो चुकी है</p>
<p dir="ltr">ये आदत<br>
जो तुम लगा गयी थी<br>
तुम्हारी नहीं, मेरी मृत्यु पर ख़त्म होनी है</p>
<p dir="ltr">टर्किश, फ्रेंच, स्पेनिश कवियों<br>
को पढ़ रहा हूँ, ऐसा लगता है<br>
सब तुम्हारे ही प्रेम में थे</p>
<p dir="ltr">मुझे याद आता है<br>
कैसे मैंने तुम्हें कविताओं पर<br>
लंबा लेख पढ़ाया था</p>
<p dir="ltr">दरअसल मेरी कोशिश<br>
तुम्हें, तुम्हारी सारी ख़ूबसूरती के साथ<br>
एक प्रेम कविता बना देने की थी</p>
<p dir="ltr">जिसमें तुमको ज़िंदा रहना था<br>
जैसे मेरा प्यार ज़िंदा है<br>
तुम्हारे चले जाने के बाद भी</p>
<p dir="ltr">मैंने कहा था<br>
तुमसे ख़ूबसूरत<br>
कोई कविता नहीं</p>
<p dir="ltr">मैंने प्रेम में<br>
तुम्हें और ख़ूबसूरत बनाया<br>
पर तुम्हें कविता नहीं बना पाया</p>
<p dir="ltr">~ हिमांशु </p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-8512267720408918992018-01-31T22:36:00.001-08:002018-01-31T22:38:00.062-08:00जिसमें तुम नहीं हो!<p dir="ltr">एक कविता है<br>
जो मैं लिखना चाहता हूँ<br>
पर मुझसे लिखी नहीं जा रही है</p>
<p dir="ltr">हमारी आख़िरी मुलाकात की ये आख़िरी कविता<br>
जिसमें मुझे उस मुलाकात के पहले और बाद कि बातें बतानी हैं<br>
जिसमें हमारे बीच हुई सारी बातों के मायने समझने हैं<br>
जिसमें मुझे तुमको जी भर के देख लेने की ख़ुशी बयान करनी है<br>
जिसमें मुझे तुमसे लिपट कर रो नहीं पाने का अफ़सोस जताना है<br>
जिसमें मुझे तुमसे कहना है कि तुमने बड़ा दिल दुखाया है मेरा<br>
जिसमें मुझे मर जाना है पर फ़िर कभी तुमको नहीं देखना है<br>
जिसमें अब मुझे कोई इंतेज़ार नहीं है<br>
जिसमें मुझे पूरी ज़िन्दगी तुम्हारा इंतेज़ार करना है</p>
<p dir="ltr">एक और कविता है<br>
जो मैं नासमझों की तरह<br>
खुश हो कर लिखना चाहता हूँ</p>
<p dir="ltr">जिसमें मुझे अपनी आदत से परे, सब अच्छा-अच्छा सोचना है<br>
जिसमें मुझे तुम्हारी छोटी-छोटी बातों में अपने लिए प्यार ढूँढना है<br>
जिसमें मुझे याद करना है हमारे बीच हुई लंबी-लंबी चैट्स को<br>
जिसमें मुझे तुमसे फ़िर से पूछना है मिलने के लिए<br>
और तुमको फ़िर से कहना है कि तुमने पहले क्यूँ नहीं पूछा<br>
जिसमें तुमको अगले महीने कह के अगले ही दिन मुझसे मिलने आना है<br>
जिसमें तुमको एक साल में पहली बार मुझे फ़ोन करना है<br>
जिसमें तुमको अपने ऑफिस से उस दिन जल्दी भागना है<br>
जिसमें तुमको भी मुझसे मिलना है<br>
जिस कविता में सब अच्छा होना है</p>
<p dir="ltr">एक आख़िरी कविता है<br>
जो मैं इस यक़ीन में लिखना चाहता हूँ<br>
कि तुम भी मुझसे प्यार करती हो</p>
<p dir="ltr">जिसमें तुमको मुझसे मिलने अपनी माँ के कपड़ों में आना है<br>
जिसमें तुमने सोच रखा है कि हम अगर कभी मिलते तो कहाँ मिलते<br>
जिसमें तुमको पता है कि मैं आज से पहले जो कुछ भी लिखता रहा हूँ सब तुम्हारे नाम का है<br>
जिसमें तुमको अपना दिल साफ़ कर लेना है पिछली सारी बातें बता के<br>
जिसमें तुमको मुझसे नज़र मिल जाने के डर से इधर-उधर देखना है<br>
जिसमें तुमको मुझे मनाना है कि मैं तुमसे प्यार करना छोड़ दूँ<br>
और जिसमें तुमको अंदर ही अंदर चाहना है कि ऐसा कभी ना हो<br>
जिसमें तुमको मुझसे गले ना मिल पाने का अफ़सोस करना है<br>
जिसमें तुम मुझे प्यार करती हो<br>
और जिसमें तुम चाहती हो मैं कहता रहा हूँ कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ</p>
<p dir="ltr">तुम जैसा कठोर दिल होता तो शायद लिख लेता ये सारी कविताएँ</p>
<p dir="ltr">~ हिमांशु</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-41093652096582148642018-01-20T08:56:00.001-08:002018-01-20T08:56:19.546-08:00ब्लैक एंड व्हाइट!<p dir="ltr">I.</p>
<p dir="ltr">दुनिया बंट जानी चाहिए।<br>
ब्लैक एन्ड व्हाइट में,<br>
हाँ या ना में,<br>
एकदम चाहिए और<br>
बिल्कुल नहीं चाहिए में।</p>
<p dir="ltr">नैतिक-अनैतिक,<br>
सही-गलत,<br>
अच्छा-बुरा जैसे<br>
मानदण्ड बीते दिनों की बातें है।<br>
ये सब ख़त्म कर देने चाहिए।</p>
<p dir="ltr">शायद,<br>
चलेगा,<br>
पता नहीं यार,<br>
ठीक है देखा जाएगा<br>
जैसे भ्रम भी टूटने चाहिए।</p>
<p dir="ltr">"बीच का रास्ता कहीं नहीं होता"।<br>
जो हैं उन्हें बंद कर देने चाहिए,<br>
जो चाहते हैं, उनसे ज़वाब मांगा जाना चाहिए।<br>
मध्य मार्ग के चक्कर में फंसा असहाय व्यक्ति<br>
बचा लिया जाना चाहिए।</p>
<p dir="ltr">मन बनाना पड़ता है,<br>
मन बना लिया जाना चाहिए।<br>
रंगों का फ़रेब छोड़,<br>
सब कुछ, तुम्हें भी<br>
ब्लैक एंड व्हाइट में देखा जाना चाहिए।</p>
<p dir="ltr">II.</p>
<p dir="ltr">तुम्हारा हँसना ऐसा था जैसे<br>
किसी ने रंगों से भरी<br>
बाल्टी उड़ेल दी हो मुझ पर<br>
और मैं तुम्हारी हँसी के रंगों में<br>
सर से पांव तक रंग दिया गया होऊँ।</p>
<p dir="ltr">तुम्हारी हँसी के बदले तुम्हें<br>
अपने प्यार से रंग देने की<br>
मेरी सारी कोशिशें नाकाम गयी,<br>
शायद इसलिए क्योंकि<br>
तुम्हारे रह-रह के लाल होते<br>
सफ़ेद चेहरे में जो सूरज वाली बात थी,<br>
उसमें जो जिंदगियों में<br>
जीवन भर देने की शक्ति थी,<br>
उनमें जो रंगों को<br>
रंगीन बनाने वाली रौशनी थी,<br>
उनको मेरे रंग में रंग कर<br>
धीमा नहीं होना था,<br>
फ़ीका नहीं पड़ना था।</p>
<p dir="ltr">मेरी दोस्त, मेरा प्यार,<br>
कल को ये दुनिया चाहे<br>
जिस भी हिसाब से बंट जाए,<br>
जिस भी तरीके से देखी जाए,<br>
तुम, तुम्हारी हाँ या ना से परे,<br>
तुम्हें क्या चाहिए और क्या नहीं<br>
जैसे तमाम सवालों से अलग,<br>
ब्लैक एंड व्हाइट में भी<br>
उतनी ही खूबसूरत रहोगी<br>
और हमेशा आसमान में रहोगी,<br>
सूरज बन कर,<br>
हर तरफ़ हँसी और रंग बिखेरती हुई।</p>
<p dir="ltr">तुम हमेशा आसमान में रहोगी,<br>
सूरज बन कर<br>
मुझसे दूर।</p>
<p dir="ltr">~ हिमांशु</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-2800980729441124422018-01-14T00:28:00.001-08:002018-01-14T00:42:10.097-08:00मुश्किल है अपना मेल प्रिये!<p dir="ltr">मुश्किल है अपना मेल प्रिये<br>
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये</p>
<p dir="ltr">तुम मेरे सपनों से भी सुंदर हो<br>
मैं दाँत निपोरता क्रिस गेल प्रिये</p>
<p dir="ltr">मुश्किल है अपना मेल प्रिये<br>
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये</p>
<p dir="ltr">तुम इंग्लिश डिपार्टमेंट की टॉपर<br>
मैं मुश्किल से होता पास प्रिये</p>
<p dir="ltr">तुम बर्गर हो मैकडोनाल्ड का<br>
मैं तो कड़वा च्यवनप्राश प्रिये</p>
<p dir="ltr">तुम बिजनेसमैन की बेटी हो<br>
मैं बेरोजगार बाप की आस प्रिये</p>
<p dir="ltr">तुम चकाचक दिल्ली मेट्रो सी<br>
मैं गंदा भारतीय रेल प्रिये</p>
<p dir="ltr">मुश्किल है अपना मेल प्रिये<br>
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये</p>
<p dir="ltr">तुम सुकून हो सबकी आँखों का<br>
मैं ऐड़ी में चुभता कील प्रिये</p>
<p dir="ltr">तुम डेवेलपमेंट हो शहरों का<br>
मैं जंगल में छूटा भील प्रिये</p>
<p dir="ltr">तुम इंडस्ट्री हो करोड़ों की<br>
मैं बिहार का चीनी मील प्रिये</p>
<p dir="ltr">तुम मनमौजी सागर के लहरों सी<br>
मैं कसता हुआ नकेल हुए</p>
<p dir="ltr">मुश्किल है अपना मेल प्रिये<br>
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये</p>
<p dir="ltr">तुम टीवी सीरीज अमरीका की<br>
मैं सास बहू का नाटक हूँ</p>
<p dir="ltr">तुम महानगर की फ्लाईओवर<br>
मैं पुराना रेल का फ़ाटक हूँ</p>
<p dir="ltr">तुम विम्बलडन की प्राइज मनी<br>
मैं बैडमिंटन का शटलकॉक प्रिये</p>
<p dir="ltr">तुम किसी मनोवैज्ञानिक सी<br>
मैं बिजली का हूँ शॉक प्रिये</p>
<p dir="ltr">तुम जैसे पसंदीदा कोई पकवान<br>
मैं कैंटीन की सड़ी हुई चाय प्रिये</p>
<p dir="ltr">तुम दुआएँ पीर-फ़क़ीरों की<br>
मुझे तक़दीर की लगी है हाय प्रिये</p>
<p dir="ltr">तुम राजस्थान के महलों सी<br>
मैं पिछड़ा हुआ बिहारी हूँ</p>
<p dir="ltr">तुम हो सुविधा अपोलो की<br>
मैं गाँव में फैली महामारी हूँ</p>
<p dir="ltr">तुम मॉलों में शॉपिंग करती<br>
मैं ग़रीब की फटी हुई चादर हूँ</p>
<p dir="ltr">तुम सभ्य, सुशील हो बचपन से<br>
मैं तो बड़ों का अनादर हूँ</p>
<p dir="ltr">तुम सुंदर सिल्क की साड़ी हो<br>
मैं लुंगी सा फटेहाल प्रिये</p>
<p dir="ltr">तुम शोभा हो अपने घर की<br>
मैं जी का हूँ जंजाल प्रिये</p>
<p dir="ltr">तुम महँगा कोई शौक़ हो<br>
मैं तो सीजन की सेल प्रिये</p>
<p dir="ltr">मुश्किल है अपना मेल प्रिये<br>
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये</p>
<p dir="ltr">~ डॉक्टर सुनील जोगी की कविता का मेरा वर्ज़न</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-3963837954309578952018-01-12T01:45:00.001-08:002018-01-12T01:45:40.203-08:00सब ख़तरे में है!<p dir="ltr">तार पर बैठी कबूतर<br>
रो रही है<br>
कल किसी ने उसके साथी के डैने नोच डाले<br>
सर काट के साथ ले गया<br>
और उसके बच्चों को खा गया।<br>
खून के लथपथ उसकी लाश को<br>
उसके घोंसले से उठा कर<br>
मैंने ही फ़ेंका था।<br>
घोंसले में बिखरे उसके पंख<br>
और उसके बच्चों की बीट<br>
अभी साफ़ होनी बाक़ी है।<br>
कबूतर तब से घोंसले में नहीं लौटी,<br>
तार पर बैठी है।</p>
<p dir="ltr">किसी की हत्या हो गयी।<br>
कोई सनकी बन फ़रार हो गया।</p>
<p dir="ltr">चार लोग<br>
आत्मा की गवाही सुन<br>
बचाने आये हैं।<br>
कहते हैं सब ख़तरे में है।</p>
<p dir="ltr">सामने नाली में<br>
सुअर<br>
मस्त कीचड़ खा रहे हैं।</p>
<p dir="ltr">~ हिमांशु</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-79511165039497838262018-01-12T00:19:00.001-08:002018-01-14T09:00:20.254-08:00प्रेम की तीन कविताएँ!<p dir="ltr">I.</p>
<p dir="ltr">तुम्हारी जरूरत<br>
मेरे बिस्तर को नहीं,<br>
मेरी बाजुओं को है।<br>
जो ये खाली-खाली सा<br>
महसूस होता रहता है,<br>
मेरे सीने से तुम्हारे सीने<br>
के टकराने पर ही भरेगा।<br>
ये आँखें अब दुनिया की गंदगी<br>
देखना नहीं,<br>
तुम्हारी आँखों में देखना चाहती हैं।<br>
ये आंसू जो अंदर रुके हैं,<br>
तुमसे<br>
लिपटने के बाद ही<br>
पलकों की दहलीज़ लांघ<br>
बाहर आएंगे।<br>
मेरा कंधा<br>
कभी तुम्हारे कंधे पर<br>
टिकना चाहता है,<br>
तो कभी<br>
तुम्हें अपना सर टिकाने<br>
कि जगह देना चाहता है।<br>
मेरे होंठ,<br>
तुम्हारे होंठों से पहले<br>
तुम्हारी आंखें चूमना चाहते हैं।<br>
मेरी उंगलियाँ,<br>
तुम्हारे बालों से गुज़रने से पहले<br>
तुम्हारी उंगलियों<br>
का भरोसा जीतना चाहती हैं।<br>
दिसंबर की किसी सर्द रात में,<br>
तुम्हारे साथ<br>
कहीं घूमने के बाद,<br>
तुम्हें जाते देखने से पहले<br>
मेरी साँसे,<br>
तुम्हारे ठंडे और<br>
ग़ुलाबी हो चुके चेहरे,<br>
के एकदम पास जा कर<br>
तुम्हारी साँसों में<br>
मिल जाना चाहती हैं।</p>
<p dir="ltr">II.</p>
<p dir="ltr">मेरा बिखरा पड़ा कमरा<br>
और मेरी थोड़ी सी<br>
बिखरी हुई ज़िन्दगी<br>
को तुम्हारी डाँट की दरकार है।<br>
अटैची में रखी वो एक्स्ट्रा लार्ज शर्ट<br>
और किचन में पड़ा कॉफ़ी मग<br>
चाहते हैं कि<br>
तुम उन्हें अपना लो।<br>
किताबें इस उम्मीद में हैं<br>
कि एकदिन उन्हें<br>
तुम्हारे चश्में से पढ़ा जाएगा।<br>
नीचे जो मैंने गद्दे बिछा रखे हैं,<br>
उनको<br>
हम दोनों को फ़िल्मी<br>
होते देखना है।<br>
तकियों को<br>
ग़ैर-जरूरी होना है,<br>
और ईयरफोन्स को शेयर।<br>
फेसबुक को गॉसिप्स चाहिए,<br>
इंस्टाग्राम को गोल्स!<br>
व्हाट्सएप्प को इग्नोर होना है।<br>
मेरे पड़ोसियों को<br>
तुम्हें सीढ़ियों पर देख<br>
मकानमालिक से शिकायत करनी है।<br>
दिल्ली की सड़कें,<br>
सीपी के सर्कल्स,<br>
मेरे कॉलेज की लाइब्रेरी,<br>
मेट्रो के कैमरे,<br>
सबको गवाह बनना है।<br>
और जैसे मेरी बातों में<br>
कब से बस तुम हो,<br>
मुझे भी<br>
कब से बस<br>
तुम्हारा होना है।</p>
<p dir="ltr">III.</p>
<p dir="ltr">मैं<br>
काफ़ी दूर खड़ा हूँ,<br>
इन बातों से,<br>
ऐसी उम्मीदों से।<br>
आंखों के सामने समंदर है<br>
जिसका अंत<br>
मुझे नज़र नहीं आ रहा।<br>
मेरे आसपास भीड़ है<br>
उम्मीद में खड़े लोगों की,<br>
नाउम्मीद हो चुके लोगों की,<br>
सब इंतेज़ार में हैं<br>
और समंदर को ताक रहे हैं।</p>
<p dir="ltr">समंदर की ठंडी हवाओं<br>
का सुकून जला देने वाला है।<br>
तुम्हारे लिए<br>
मेरे प्रेम की तरह।</p>
<p dir="ltr">जलना,<br>
इंतेज़ार करना,<br>
प्रेम करना,<br>
सब हिम्मत की बात है।</p>
<p dir="ltr">मैं काफ़ी दूर खड़ा हूँ<br>
तुम्हारे प्रेम में,<br>
तुम्हारे इंतेज़ार में,<br>
जलता हुआ।</p>
<p dir="ltr">~ हिमांशु</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-72250850332219647322017-12-30T15:12:00.001-08:002017-12-30T15:14:09.644-08:00बेहतर है हमारे सपनों का मर जाना<p dir="ltr">दुनिया भर की कविताएं बदल देने का वक़्त है<br>
उन कविताओं से<br>
जिनमें जीत नहीं<br>
प्रेम नहीं<br>
क्रांति की लपटें और<br>
प्रतिशोध की ज्वाला नहीं<br>
जिनमें सुरंग के उस पार<br>
कोई रौशनी की किरण नहीं<br>
जिनमें है तो बस<br>
हार, मायूसी, निराशा,<br>
हताशा<br>
और उसके सारे पर्याय</p>
<p dir="ltr">कविताओं ने कभी कुछ नहीं बदला<br>
प्रेम में कविता लिखने वाला कवि<br>
बिना प्रेम मिले मर गया<br>
क्रांति चाहने वाले को<br>
गोलियों से भून दिया गया<br>
तानाशाह के ख़िलाफ़ खड़ा कवि<br>
सड़ने दिया गया ज़ेल में<br>
जिस कवि ने जीने की बातें की थी<br>
25 साल की उम्र में मर गया<br>
और खून की उल्टियाँ करने वाला<br>
बुढ़ापे तक जीता रहा<br>
कविता ने अपने लिखने वालों को<br>
कुछ भी तो नहीं दिया</p>
<p dir="ltr">मरने वाले को नोबेल नहीं चाहिए था<br>
साल में दो दिन फेसबुक पर ट्रेंड नहीं होना था<br>
अपने नाम पर साहित्यिक सम्मेलन,<br>
फैन क्लब्स नहीं चाहिए थे<br>
उस प्रेमी, क्रांतिकारी,<br>
विद्रोही को,<br>
जीने की चाह लिए उस लड़के और<br>
उस सनकी बुड्ढे को<br>
अपने-अपने दिलों में हुए गड्ढे भरने थे<br>
और अपने जीते जी भरने थे<br>
उनको तुम्हारे कमरे में पोस्टर बन<br>
दीवार पर नहीं लटकना था</p>
<p dir="ltr">अब जरूरत है<br>
उन सारी कविताओं को बदल देने की<br>
जिनमें उन कवियों की चाहतें<br>
आज भी जिंदा हैं और<br>
साँसे ले रही हैं<br>
जिन कविताओं में<br>
उन कवियों की उम्मीद बाक़ी है<br>
हम मुर्दा कौम हैं<br>
अब जरूरत है<br>
उन कविताओं को भी मार देने की<br>
और ऐसी कविताओं से बदल देने की<br>
जिनमें कोई कवि<br>
कोई ख़्वाब नहीं पाले बैठा है<br>
जिनमें किसी सनकी का विरोध या<br>
विरोधाभास नहीं है<br>
जरूरत है कि सारी कविताएँ<br>
एक सी हो जायें<br>
बिना किसी रंगीन दुनिया की चाहत के<br>
कवि के मर जाने से पहले<br>
उसके सपनों के मर जाने की जरूरत है</p>
<p dir="ltr">~ हिमांशु</p>
<p dir="ltr">(विरोधाभास - Paradox)</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-23039183935568100642017-11-27T01:50:00.001-08:002017-11-27T01:56:09.479-08:00सुरमें से लिखे तेरे वादे!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मैं जब भी ये गाना सुनता हूँ, और मैं ये गाना हर रोज़ सुनता हूँ, मुझे अफ़सोस होता है। दिल्ली शहर से मैंने खूब इश्क़ किया है, इस शहर को मैंने हद तक जिया है, लेकिन मैं इस दिल्ली शहर में इश्क़ नहीं कर पाया। मैं इस शहर में इश्क़ को नहीं जी पाया। ऐसा नहीं है कोशिश नहीं कि, पर असफल ही रहा। ना ये शहर कल का कल ख़त्म हो रहा है ना ही मैं, लेक़िन अब ये नाउम्मीदी आ गयी है कि इस शहर में कभी इश्क़ नहीं जी पाऊँगा। और मुझे अब कोई खास फ़र्क भी नहीं पड़ता पर जब ये गाना अपने अंत तक पहुँच रहा होता है और "तुझसे मिलना पुरानी दिल्ली में" वाली लाइन आती है तो एकदम से अंदर कहीं कुछ खटकने लगता है। लगता है अभी तो काफ़ी कुछ करना बाक़ी रह गया इस शहर में जिसके बिना अब तक जो भी किया सब अधूरा है। गुलज़ार साहब को ऐसा प्यारा गाना लिखने के लिए बद्दुआएं लगेंगी मेरी।<br />
<br />
~ हिमांशु<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<iframe width="320" height="266" class="YOUTUBE-iframe-video" data-thumbnail-src="https://i.ytimg.com/vi/DovUEruZ2q4/0.jpg" src="https://www.youtube.com/embed/DovUEruZ2q4?feature=player_embedded" frameborder="0" allowfullscreen></iframe></div>
<br /></div>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-45127605538763955912017-11-18T09:22:00.001-08:002017-11-18T09:23:04.668-08:00निशा!<p dir="ltr">मैंने कई रातों से दिन नहीं देखा। दरवाज़े के उस पार रौशनी है, चारों ओर उज़ाला ही उज़ाला है। मुझे रौशनी पसंद नहीं है, उज़ाले पसंद नहीं है। रौशनी अपने साथ दिन का शोर लाती है, दिन की चहलकदमी लाती है। मेरा सर फटता है रौशनी और उसके शोर में। रात में ऐसा नहीं होता। ऐसा नहीं है कि रात में शोर नहीं होता। रात चीख़ती है। पर रात सुनती भी है। दिन में कोई नहीं सुनता, दिन भी नहीं सुनता। सब बोलते जाते हैं, दिन भी बोलता जाता है। आपके भीतर भी कोई बोल रहा होता है, आप उसको नहीं सुनते। कई बार अकेले रास्तों पर सुन के अनसुना कर देते हैं। रात में आपके भीतर की आवाज़ें भी चीखने लगती है; रात में आप सुनते हैं। आप अपने भीतर की आवाज़ को क़ाबू में कर लेना चाहते हैं; नहीं कर पाते हैं तो ज़वाब ढूँढते हैं, उपाय ढूँढते हैं। रात को आपको समय देती है साहसी बन जाने का। रात आपको ख़ुद पर विजयी होना सिखाती है। रात के सन्नाटे में जब आप चीख़ते हैं तो रात सुनती है, जब रात चीख़ती है तो आप सुनते हैं। उज़ाला आंखों में चुभता है, अंधेरा कभी किसी की आँख में नहीं चुभा। रात के अकेलेपन में आप अकेले नहीं होते। आप के साथ आप होते हैं। दिन के उज़ाले में आप बस भीड़ का हिस्सा होते हैं। दिन में आप दुत्कारे जाते हैं, रात आपको क़रीब लाती है, खुद के, दूसरों के। रात प्यारी चीज़ है; रात प्यार करना सिखाती है, प्यार करने के मौके देती है। मैंने रात में जीना चुना है। मैंने रात को जीना चुना है।</p>
<p dir="ltr">~हिमांशु<br>
</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-88676727934140890062017-11-12T10:19:00.001-08:002017-11-12T10:52:30.778-08:00मैं असामान्य था!<p dir="ltr">मैं अब अपने ख़ात्मे की ओर अग्रसर हूँ। मैं अपने हिस्से का जल चुका; मैं अपने हिस्से की रौशनी जी चुका। अब धीरे-धीरे मेरे बुझ जाने का समय आएगा और मैं अपना अस्तित्व समेट के जा चुका होऊँगा। मेरे ख़त्म हो जाने के बाद जब मुझे याद किये जाने के लिये ऐसी कोई वज़ह नहीं बची होगी, मैं चाहता हूँ मुझे याद न किया जाए। मैं चाहता हूँ मैं जिस अंधेरे को ख़त्म करने की चाह में खुद ख़त्म हो गया वो बरकरार रहे, और मेरा वजूद और वो रौशनी जो मैंने खुद को जला कर पैदा की थी उस अंधेरे को ख़त्म करने के लिए, वो सब उसी अंधेरे में सिमट जाए। जब मैं जल रहा था, मैं कुछ भी हो जाने की क्षमता रखता था। मैं तुम्हारा सूरज हो सकता था, मैं जल कर भी असीमित सालों तक तुम्हें हर अंधेरे से बचा सकता था, मगर तुमने मेरा मुक़द्दर किसी सामान्य से तारे की तरह एकदिन जल कर गुमनामी में बुझ जाना तय किया। मैं तुम्हारे तय किये मुक़द्दर को ही अपना मुक़द्दर मान ख़त्म हो रहा हूँ।<br>
मगर मैं चाहता हूँ जब अंधेरा मुझे पूरी तरह से खा चुका होगा तो तुम मेरी रौशनी का एक किरण संभाल कर रख लेना कहीं। जब अंधेरा तुम्हें भी खा जाएगा एकदिन, मैं चाहता हूँ मेरी रौशनी के उस एक किरण से तुम पूछो कि ऐसा क्यों हुआ कि इस अंधेरे से हम सब ही हार गए? क्या ये अंधेरा ही इस ब्रह्मांड का शाश्वत सत्य है?<br>
मेरी रौशनी को किसी तरह का शाप था शायद। मैं जलता हुआ भी अंधेरे में ही था। मेरी रौशनी नकार दी गयी थी। मेरी रौशनी को भी अंधेरे का नाम दे दिया गया था। मैं अपने पूरे ज़ोर से जल कर भी अपने ऊपर लगा शाप नहीं हटा पाया था, अपनी रौशनी को रौशनी का नाम नहीं दिलवाया पाया था।<br>
जब बुझते हुए तुम, अपने आख़िरी सवालात करोगे मेरी शापित रौशनी के संभाले गए उस आख़िरी किरण से, वो तुम्हें बताएगी कि कैसे मैं भी तुम्हारी तरह कुछ सवाल कर रहा था, कैसे मैं भी चीख़ रहा था, और जिस ज़वाब की तुम्हें अब दरकार है, मैं अपनी सारी उम्र जलता हुआ वही कह रहा था। तब मेरी सुनी नहीं गयी, मेरी रौशनी की तब अहमियत नहीं थी, क्योंकि तब तुम खुद रौशन थे और खुद को सूरज मान बैठे थे, तुम्हें लगा था तुम्हारी ऊर्ज़ा कभी ख़त्म नहीं होगी, अंधेरा तुम्हें कभी नहीं खायेगा। मेरी रौशनी की आख़िरी किरण तुम्हें बताएगी कि हर सूरज महज़ एक तारा है और एक दिन हर सूरज को हर आम तारे की तरह ही बुझ जाना है, इस अंधेरे को अपना मुक़द्दर मान लेना है। जैसे मैंने मान लिया था, तुम्हें भी मान लेना होगा। अंत में बस अंधेरा ही होगा, और कुछ नहीं।</p>
<p dir="ltr">मेरे रौशनी की आखिरी किरण तब कई फ़र्क पैदा कर देगी। तुम तुम्हारा सामान्य होना मान लोगे। मगर तब तुम्हें मेरे असामान्य होने का भी पता चल जाएगा। मैं सच में तुम्हारा सूरज होने की क्षमता रखता था। कभी ना ख़त्म होने वाला असीमित और असामान्य सूरज।</p>
<p dir="ltr">~ हिमांशु</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-7331297990020679052017-11-11T17:30:00.001-08:002017-11-12T10:30:31.511-08:00तुमसे मिलना!<p dir="ltr">आज जिस जगह पर मैं था, वहाँ मेरी जगह पर होना दुनिया में सबसे बुरी जगह पर होना था। वो लड़की जिस से आपको बेइंतेहा मोहब्बत है वो आपके सामने खड़ी है, और वो इतनी खूबसूरत लग रही है कि बस आप चाहते हों कि इस दुनिया का चलना, इस समय का आगे बढ़ना अभी के अभी रोक दिया जाना चाहिए ताकि आप बस उसको देख सकें और देखते रह सकें; तब तक जब तक आप उसे अपनी आँखों में भर लेने का ख़्वाब पूरा नहीं कर लेते या तब तक जब तक उसे देखते देखते आपकी जान नहीं चली जाती। आपने जो उसका रूप ख़्यालों में सोचा था वो उस से भी ख़ूबसूरत लग रही है; किसी कविता की तरह, किसी ग़ज़ल की तरह, मुझे नहीं पता किसकी तरह बस लग रही है और आप कुछ नहीं कर सकते। आप उसकी आँखों में देख कर उसे बता नहीं सकते कि उसको देख कर कितनी देर से आपकी सांसे थमी हुई हैं; आपने अपने ख़्यालों में हर रोज़ उसे सीने से लगाया है पर आज जब वो सामने है आप उसे छू कर ये भी नहीं पूछ सकते कि कहीं ये सब फ़िर से कोई ख़्याल ही तो नहीं। आप कुछ नहीं कर सकते सिवाए मलाल के। आप कुछ नहीं कर सकते सिवाए अपनी तक़दीर पर हँसने के। आप ना उसे पाने की चाह छोड़ सकते हैं ना उस से मोहब्बत करना और आप खुद से निराश होना भी नहीं बंद कर सकते। और आपकी मोहब्बत सामने है, इसीलिए आप हँसना भी नहीं छोड़ सकते। आप कुछ नहीं कर सकते सिवाए उस से और मोहब्बत करने के।<br>
मोहब्बत में सौ तरह के दर्द होते होंगे पर अपने महबूब से मिल कर भी ना मिलने के दर्द से ज्यादा अफ़सोस भरा दर्द कोई भी नहीं। इत्तेफ़ाक़ से मुझे कुछ और मिला ना मिला हो, ये दर्द ख़ूब मिला है और मेरी क़िस्मत ऐसी है कि मैं इन इत्तेफाक़ों के बंद हो जाने की दुआएं भी नहीं माँग सकता क्योंकि मैं जी ही इन इत्तेफाक़ों के भरोसे रहा हूँ। मेरी जगह पर होना सबसे बुरी जगह पर होना है।</p>
<p dir="ltr">~ <u>हिमांशु</u></p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-23453507601486892752017-10-28T19:08:00.001-07:002017-10-28T19:08:38.337-07:00मैं जाग रहा होऊंगा!<p dir="ltr">I.</p>
<p dir="ltr">जब ज़माने भर के लोग<br>
अपने-अपने हिस्से की नींद सो रहे होंगे,<br>
मेरी हम-नफ़स,<br>
मैं जाग रहा होऊंगा।</p>
<p dir="ltr">तुम्हारे प्रेम में नहीं,<br>
तुम्हारे इंतेज़ार में नहीं,<br>
ना ही तुम्हारी तस्वीर को ताकता हुआ।</p>
<p dir="ltr">मेरी हम-नफ़स,<br>
मैं जाग रहा होऊंगा,<br>
इस आस में कि<br>
अभी से थोड़ी देर पहले,<br>
जब तुमने अपनी आँखें मूंदी होंगी,<br>
तो जिस एक ख्याल ने<br>
तुम्हारे होंठों पर,<br>
हल्की सी एक मुस्कुराहट बिखेरी होगी,<br>
वो ख़्याल मेरा रहा होगा,<br>
और वो मुस्कुराहट मेरे लिए होगी।<br>
तुम पर मैं कभी<br>
अपना हक़ नहीं बता पाया,<br>
पर तुम्हारी उस मुस्कुराहट पर<br>
अपना अधिकार बताने के लिए,<br>
मैं जाग रहा होऊंगा।<br></p>
<p dir="ltr">मेरी हम-नफ़स<br>
मैं जाग रहा होऊंगा,<br>
इस उम्मीद में मुस्कुराता हुआ कि,<br>
आदतन,<br>
नींद की आग़ोश में जाने से पहले<br>
हज़ार बातों को अपने अंदर दबा कर,<br>
बची-खुची जो भी बातें तुमने छांटी होंगी,<br>
अपने हमराज़ से बताने के लिए,<br>
उन बची-खुची बातों में मौजूद<br>
उन बेशुमार किस्सों में,<br>
कहीं एक ज़िक्र<br>
मेरे नाम का होगा,<br>
हमारे नाम का होगा,<br>
जिस पर तुम अपनी मुस्कुराहट दबा लोगी,<br>
अपनी उत्सुकता छुपा लोगी,<br>
अपने उस हमराज़ से,<br>
अपने सारे हमराज़ों से।<br>
तुम्हारे उन्हीं उलझनों को जीता हुआ,<br>
मैं जाग रहा होऊंगा।</p>
<p dir="ltr">मेरी हम-नफ़स<br>
मैं जाग रहा होऊंगा,<br>
इस इंतेज़ार में कि<br>
अपने हिस्से की जो भी नींद<br>
मैं अब तक तुम्हारे नाम जाग चुका हूँ,<br>
उन नींदों का,<br>
और उन अनगिनत रातों का,<br>
जब मुझसे हिसाब मांगा जाएगा,<br>
तो मैं उन रातों में तुम्हारे नाम लिखीं<br>
वो सारी चिठ्ठियां खोल सकूँगा,<br>
जो कभी मेरे कमरे से,<br>
रात का अंधेरा चीर कर,<br>
तुम तक ना पहुँच सकीं।<br>
मैं तुम्हारे लिए लिखीं<br>
अपनी वो सारी कविताएँ पढ़ सकूँगा,<br>
जिनके अंत में,<br>
या शुरू में,<br>
मैं तुम्हारा नाम नहीं लिख पाया।<br>
उन सारी चिट्ठियों,<br>
और उन सारी कविताओं को, उनके<br>
मुक़म्मल पते पर पहुँचाने के संघर्ष में,<br>
ख़ुद से हारता-जीतता हुआ,<br>
मैं जाग रहा होऊंगा।</p>
<p dir="ltr">तुम्हारे बार-बार कहने के बाद भी,<br>
मेरी हम-नफ़स,<br>
मैं जाग रहा होऊंगा।</p>
<p dir="ltr">मेरी हम-नफ़स,<br>
मैं जाग रहा होऊंगा।</p>
<p dir="ltr">~ © Himanshu</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-49644841303856526412017-08-29T14:05:00.001-07:002017-08-29T17:26:01.484-07:00कि तुम मेरी कोई नहीं<p dir="ltr">मैं क्यूँ भूल जाता हूँ हमेशा,<br>
कि तुम्हारे बिना भी ज़िंदगी है,<br>
कि तुम्हारे अलावा भी लोग हैं,<br>
कि तुम्हारे बिना भी दिन ढ़ल ही रहा है,<br>
रात गुज़र ही रहे हैं,<br>
कि तुमसे पहले भी कोई था,<br>
और तुम्हारे बाद भी कोई होगा।</p>
<p dir="ltr">मैं क्यूँ भूल जाता हूँ हमेशा,<br>
कि तुम अब किसी और की हो<br>
और मेरी तुम्हारी अब कोई कहानी बाक़ी नहीं।<br>
मैं क्यूँ भूल जाता हूँ हमेशा,<br>
कि जो ग़लतफ़हमियाँ मैंने पाल रखी थीं तुम्हारे होने की,<br>
वो महज़ गलतफहमियों के और कुछ नहीं थी,<br>
और तुम जो मेरे पास आती दिख रही थी,<br>
दरअसल एक स्वप्न था जो मैं खुले आखों से देख रहा था।<br>
मैं क्यूँ भूल जाता हूँ हमेशा,<br>
कि ये मेरा इंतेज़ार कभी ख़त्म नहीं होगा,<br>
और मेरी सब बातें बिना कहें दफ़्न हो जाएंगी,<br>
कि जब मेरी सांसें धीमें-धीमें साथ छोड़ देंगी,<br>
तुम तब भी किसी और के ज़ीवन का उजाला बन सब कुछ रौशन कर रही होओगी।</p>
<p dir="ltr">मैं क्यूँ भूल जाता हूँ हमेशा,<br>
कि किसी का पराया ना लगना और उसका अपना होना<br>
दोनों दो बातें हैं,<br>
और भले ही तुमको अपना मान कर मैंने अपना सब कुछ कह दिया हो,<br>
भले ही तुमको अपना मान कर मैंने अपना सब कुछ मान लिया हो,<br>
भले ही तुमको अपना मान कर मैंने अपनी सैकड़ों रातें तुम्हारे नाम कर दिए हो,<br>
भले ही तुमको अपना मान कर मैंने अपनी कहानी में तुमको लाने की बेइंतहां कोशिशें की हो,<br>
सच्चाई, कि तुम मेरी कोई नहीं हो,<br>
कभी नहीं बदल सकती।<br>
और ये भी कि,<br>
जीवन के इस बेरंग और बोझिल से सफऱ में,<br>
मुझे अकेले ही चलना है,<br>
और एक दिन अकेले ही मर जाना है।<br>
क्योंकि सच्चाई यही है कि<br>
इस सफ़र में तुम कभी मेरी हमसफ़र नहीं हो सकती।<br>
तुम कभी मेरी नहीं हो सकती।</p>
<p dir="ltr">क्यूँ बस इतना याद रहता है मुझे हमेशा,<br>
कि तुम्हारे बिना कोई ज़िंदगी नहीं है<br>
कि तुम्हारे अलावा इस दुनिया में मेरे लिए और कोई नहीं है<br>
कि तुम्हारे बिना ये दिन मुझ पर भारी पड़ते हैं<br>
और ये रातें गुज़ारनी मेरे बस की नहीं है<br>
कि तुमसे पहले तुम जैसा कोई न था<br>
और न तुम्हारे बाद कोई होगा</p>
<p dir="ltr">(शायद इसलिए<br>
क्योंकि तुम बाकियों जैसी लाखों करोड़ों में एक नहीं हो,<br>
बल्कि तुम वो सौग़ात हो,<br>
जो जीवन में एक बार और बस एक बार मिलती है,<br>
और हर किसी को नहीं मिलती।<br>
और मुझे वो "हर किसी" नहीं बनना मंज़ूर नहीं। )</p>
<p dir="ltr">~ <u>हिमांशु</u></p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-11832910709359092072017-07-26T03:23:00.001-07:002017-07-26T03:23:45.632-07:00Bhartiya Rail Diaries latest episode featuring Kanhaiya Kumar and almost no girl!<p dir="ltr">15th April 2016। JNU row उस टाइम तक एकदम फ्रेश था और हर जगह इसी पर बात होती थी।<br>
मुझे पासपोर्ट के सिलसिले में बिहार से अपने लोकल थाने से वेरिफिकेशन के लिए फ़ोन आये हुए क़रीब दस दिन हो चुके थे पर कॉलेज में सीनियर्स का फेयरवेल था 14 को और इतनी जल्दी टिकट भी कहाँ मिलता है बिहार जाने के लिए, इसीलिए मैं नहीं जा पाया था अभी तक। पापा ने SP आफिस से कहवा के मेरा आवेदन थाने में रुकवा लिया था इसीलिए मैंने भी सोच लिया था कि अब 14 के बाद ही जाऊँगा यहाँ से। 15 को मैंने तय किया कि जनरल टिकट ले के स्लीपर में चढ़ जाऊंगा और जैसा होगा टीटी से मैनेज कर लूंगा। नई दिल्ली स्टेशन पहुंचा तो भीड़ देखी, किसी कुम्भ के मेले जैसी थी। 15-20 टिकट काउंटर हैं, किसी भी टिकट काउंटर से मैं टिकट नहीं ले पाया। फिर पता नहीं क्यूँ प्लेटफॉर्म टिकट लेने का आईडिया आया; नीचे आया तो देखा कि वहाँ और ज्यादा लंबी लाइन है। सम्पूर्ण क्रांति का समय भी हो चला था और पकड़नी भी वही ट्रेन थी क्योंकि ऐसे बिना रिज़र्वेशन जाने का कष्ट जितना कम समय का हो उतना अच्छा। अंत में मेरे दोस्त ने एक लड़की से बात की, दोस्त हैंडसम था तो लड़की मान गयी और हँसते-हँसते लाइन में Women's Card खेलते हुए सबसे आगे जा पहुँची और हमारे लिए दो प्लेटफार्म टिकट ले आयी और प्यारी सी मुस्कुराहट के साथ हमें थमा दिया।<br>
अब मैं प्लेटफार्म पर पहुँचा तो देखा कि यहां तो बाहर से चौगुनी भीड़ है। ट्रेन में जनरल डब्बे में लोग माचिस की तीलियों जैसे भरे पड़े हैं। आगे बढ़ा, स्लीपर में देखा तो वहां भी वही हालत है। इतनी भीड़ है कि लोग दरवाज़े से अंदर नहीं घुस पा रहे हैं। कुछ गरीब लोग अपने परिवार वालों को एमरजेंसी विंडो के सहारे अंदर धकेल रहे हैं। अंदर झांका तो जनरल डिब्बे जैसा ही हाल था। लोगों ने अंदर-बाहर ऊपर-नीचे बस किसी तरह खुद को फंसा लिया था। मेरे जैसे शहरी बच्चे में इतनी कुव्वत ही नहीं थी कि अंदर घुस पाता। "जब गांड में नहीं था गूदा तो काहे लंका में कूदा" वाली बात बार-बार दिमाग में घूम रही थी, अफ़सोस भी हो रहा था। एकाध बार को ख़्याल आया कि लौट जाऊं पर फिर पासपोर्ट का मोह भी था (क्योंकि मेरा पासपोर्ट कई तरह अटकलों के बाद एक साल में बना था)। तो एक दोस्त को फ़ोन किया और 2-3,000 रुपये मंगाए (कुछ अपने पास थे) और तय किया कि शासन-प्रसाशन अपनी #### ####, हम तो चढ़ेंगे अब AC में ही, चाहे जो फाइन लगे। दोस्त भला आदमी था (है) तो तुरंत पैसे लेकर पहुँच गया। AC3 में पहुंचे तो देखा कि वहाँ भी घुसने की जगह नहीं है क्योंकि जिनकी स्लीपर में कंफर्म टिकट थी और अंदर नहीं घुस पाए वो सब यहाँ घुस गए हैं। वहां भी हिम्मत नहीं हुई तो आगे AC2 की ओर बढ़े तो वहाँ भी लगभग वही नज़ारा, दरवाज़े पर 25-30 लोग ठुंसाये हुए हैं। अब एक ही उपाय था, AC1, तो उस ओर बढ़े तो देखा वहाँ कोई है ही नहीं, एकदम ख़ाली। अब ये तो और भी बुरी बात हो गयी क्योंकि जब आप नियम-क़ानून से खेल रहे होते हैं तो आप चाहते हैं कि कुछ लोग आपके साथ हो, आप एकदम से अकेले ना हो पर वहाँ हम दोनों दोस्तों के अलावा और कोई नहीं था। कोई उपाय नहीं था, हमनें सबसे पीछे जा कर गार्ड से बात कि, बात नहीं बनी, फिर हमनें सबसे आगे आ कर ड्राइवर को कहा कि अपने साथ इंजन में बैठा लीजिये, वो भी sarcastic हुआ कुछ देर फिर हमें भगा दिया। अंत में क्या करते, चढ़ गए हम दोनों AC1 में ही। (मेरा दोस्त बस मुझे छोड़ने आया था लेकिन उस साले को भी किक चाहिए था, इसीलिए वो भी चढ़ गया और तीसरा दोस्त फाइन भरने लायक पैसे देकर लौट गया, इस आश्वासन के साथ कि कुछ होगा तो फ़ोन करना, साला सब देख लिया जाएगा।)</p>
<p dir="ltr">अब शुरू हुई हमारी यात्रा, AC1 के दरवाज़े के पास बैठे-बैठे ग़ाज़ियाबाद भी नहीं आया था कि टीटी महोदय आ गए और हमें वहां से हटने कह दिया। हम नहीं माने तो पुलिस बुला कर बाहर फेंकवा देने की बात कही गयी। अंत में हार मान कर हम दोनों ही अंदर-अंदर AC2 में पहुँचे। वहाँ सब खड़े थे, हम भी खड़े हो लिये।<br>
देखते-देखते (कष्ट झेलते-झेलते, tbh) जब कानपुर आने को आया तो टीटी ने वहां से भी कुछ लोगों को खदेड़ दिया, हम डटे रहें लेकिन उस टीटी की कृपा से अपने-अपने जगहों पर बैठने की जगह मिल गयी सबको। और जब सब बैठे तो शुरू हुई बातें।<br>
हमारे सामने वाले भाईसाहब ने हमारे कपड़े-लत्ते और लगेज (जी हाँ, लगेज भी था) से हमें किसी सम्पन्न परिवार का जान बात शुरू की {और बतानी भी मुझे बस यही बात थी, ऊपर की कहानी बस इसीलिए बताई ताकि कल को आप जब बुलेट ट्रेन से यात्रा करें तो आपके ज़ेहन में ये बात होनी चाहिए कि लोग ऐसे भी सफ़र (suffer) करते हैं।}<br>
बातों से मालूम चला कि भाई साहब भी मेरे ही शहर हाजीपुर से हैं और मेरे घर के पास ही रहते हैं। भाईसाहब को अपनापन लगा तो उन्होंने मुझसे मेरी जाति पूछ ली, उन्होंने पूछी तो मैंने उनकी पूछ ली (मैं जाति हमेशा मुझसे जाति पूछने वाले की हीं पूछता हूँ क्योंकि ये मेरे एक निज़ी social survey का हिस्सा है)।<br>
तब भाईसाब ने पूछा कि, "भाई, JNU में तो नहीं पढ़ते हो?", क्योंकि लग तो वैसे ही रहे हो।<br>
मैंने बताया कि नहीं मैं JNU में नहीं पढ़ता हूँ और उसका एंट्रेंस निकालने की मेरी औकात नहीं है इसीलिए शायद कभी पढ़ भी नहीं पाऊं।<br>
ये बात भाईसाहब को खुश कर गयी और वो थोड़ा और खुल गए। JNU वाले ऐसे हैं, वैसे हैं, फलाना-ढिमकाना कहने लगे। वही सब बातें जो न्यूज़ चैनेल्स पर आपने सुनी होंगी।<br>
फ़िर उन्होंने बोला कि, "ई कन्हैया जैसा छोट-जतिया (मूल शब्द ज्यादा offensive थे) सब आरक्षण ले के JNU पहुँच गया है और देश के ख़िलाफ़ बोलता है, हम तो कहते हैं कि कन्हैया को चौराहा पर खड़ा कर के गोली मार देना चाहिए।"<br>
मैंने हँसते हुए कहा कि, "जानते हैं भईया, कन्हैया भी आप ही के जात का है और ऊ भी अइसा ओइसा नहीं, आपके जात के लोगों के बाहुबल के लिए मशहूर बेगूसराय ज़िले का है। इसीलिए उसको आप कम मत बूझिये, आप ही तरह मेरिटधारी है वो। और उसको अच्छे से पता है वो क्या कर रहा है, दिमाग से तेज़ होने के लिए तो आप लोग मशहूर हैं ही।"</p>
<p dir="ltr">भाईसाहब को लगा कि मैं मज़ाक कर रहा हूँ, उन्होंने कहा भी कि, "क्या बात करते हो? सही में? देखने से, पेन्हावा ओढ़ावा से लगता तो नहीं है।"<br>
मैंने उनको यकीन दिलाया। अब भाईसाहब के हावभाव बदल गए। उनकी बातें नर्म हो गयी। उनको अब कन्हैया को गोली नहीं मारना था, अब उसकी Mob Lynching नहीं करनी थी। उन्होंने कन्हैया के हरक़तों (उनके हिसाब से जो हरक़तें थी) पर अफ़सोस जताया और कहा कि PhD में है, इतना तो समझना चाहिए था कि देश सबसे ऊपर है।<br>
उनसे थोड़ी और बातें हुईं, दिल के भले आदमी थे।</p>
<p dir="ltr">फ़िर कुछ देर में कानपुर आ गया और हम सबको मैजिस्ट्रेट चेकिंग में AC2 से बाहर उतार के धर लिया गया, हाजीपुर वाले भाईसाहब से मुलाक़ात वहीं तक कि थी। वहां से आगे घर कैसे पहुंचे वो कहानी फिर कभी।<br>
___</p>
<p dir="ltr">आज कुणाल कामरा का नया वीडियो देखा कन्हैया-उमर के साथ तो ये किस्सा याद आया।</p>
<p dir="ltr">#भारतीय_रेल_डायरीज</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-74939319404717212982017-05-14T04:54:00.001-07:002017-05-14T10:49:55.034-07:00अगर कभी कुछ लौटा पाया तो माँ को उसकी जवानी लौटाऊंगा।<p dir="ltr">"अगर कभी कुछ लौटा पाया तो माँ को उसकी जवानी लौटाऊंगा।"</p>
<p dir="ltr">हमलोग वो बेटे/बेटियां <u>हैं</u> जो पले-बढ़े तो बड़े नाज़ों से लेकिन हमें ये एहसास कभी नहीं हुआ कि हम जब बड़े हो रहे थे तो हमारी हँसी में एक औरत, जो हमारी माँ थी, उसके अपने सपने दफ़न हो रहे थे।</p>
<p dir="ltr">हम में से जो भी ग्रामीण इलाकों से, ग्रामीण परिवेशों से या छोटे शहरों से आते हैं, उनमें से ज़्यादातर (या शायद सबकी ही) माँओं की शादियां कम उम्र में ही हुई होगी। उस दौर में (और अभी भी) लड़कियों की शादियाँ 15, 16, 17, 18 जैसी उम्र में ही हो जाती थी। कुछ की मैट्रिक के बाद तो कुछ की बारहवीं के बाद, मगर शादी करा ही दी जाती थी।<br>
एक बार शादी हो गयी फिर ससुराल में कैसा बर्ताव होगा ये उनकी अपनी किस्मत। एक साल, दो साल, तीन साल तक में बच्चा हो गया, फिर उस बच्चे का लेरकम करते रहिए। जवान होने से पहले ही ज़वानी चली गयी, उड़ान भरते इस से पहले पैरों में बेड़िया डाल दी गयी। 24-25 की उम्र आते-आते ज़वानी होती क्या है उसका एहसास भी ख़त्म।</p>
<p dir="ltr">अब जब बचपन की तस्वीरों में अपनी कम उम्र की माँ को मुझे प्यार से पकड़े देखता हूँ तो अफ़सोस होता है अपने पैदा होने पर। बुरा लगता है उस औरत के लिए। ऐसा लगता है मैं वो बेटा हूँ जो अपनी माँ की ज़वानी खा गया।</p>
<p dir="ltr">आज जब बड़े शहर में हूँ, कॉलेज में हूँ तो अपने आसपास अपने हमउम्र लड़कियों को देखता हूँ, उनको मिली आज़ादी को देखता हूँ तो बस अपनी माँ के बारे में ही सोचता हूँ। सोचता हूँ कि जब मेरी माँ इस उम्र की थी तो उसके गोद में मैं झूल रहा था। वो भले ना समझे पर था मैं बोझ ही। जब मैं खुद आज ज़वानी के दहलीज़ पर खड़ा हूँ, अब जब मैं महसूस कर सकता हूँ कि जवान होना किसे कहते हैं, अब जब मैं ख़ून में रवानगी की बातें करते फिरता हूँ तो मुझे पता है कि मेरे अंदर ये जो भी है ये मेरी माँ से ही आया है पर अफ़सोस इस बात का होता है कि खुद मेरी माँ इस एहसास को नहीं जी पायी।</p>
<p dir="ltr">जब अपने आसपास ( और फेसबुक पर भी) 27-28 साल की किसी बेफिक्र लड़की को ज़िन्दगी अपने शर्तों पर जीतें देखता हूँ, अपने प्रेमियों को खुल के आलिंगन करते देखता हूँ, उनका अपने पूर्व-प्रेमियों के बारे में लिखे गए पोस्ट्स पढ़ता हूँ, समाज ने औरत के चरित्र को लेकर जो मानदण्ड बनाये हैं, उनको जब उसका उल्लंघन करते हुए अपनी 'बदचलनी' को क़ुबूल करते देखता हूँ, जब उनको खुद को एक्सप्लोर करते देखता हूँ तो ये याद आ जाता है कि जब मेरी माँ 28 की थी तब मैं ना सिर्फ़ था बल्कि बड़ा हो गया था।</p>
<p dir="ltr">ये वो उम्र होती है जब इंसान जुनून में कुछ भी कर गुज़रने की हालत में होता है। कितना भी बड़ा रिस्क हो, मन हो गया तो ले ही लेता है। और जिसके अंदर कोई जुनून ना हो वो कम से कम सो-सो के ही सही लेकिन थोड़ा बहुत तो अपने आप को समझने की कोशिश करता ही है। (बाक़ी मेडल-वेडल लाने वाली तो फिर अलग ही लेवल की है।)</p>
<p dir="ltr">जरूरी नहीं कि मेरी माँ के भी यही सपने रहे होंगे, या कोई सपने रहे ही होंगे। ये भी जरूरी नहीं कि उसको आज़ादी मिलती, मौक़ा मिलता तो ज़िन्दगी में कुछ बड़ा कर ही लेती। शायद वो बुरी तरह फ़ेल हो जाती। लेकिन कम से कम अपने हिसाब से तो जीती। ज़वानी के सारे एहसासों को तो जीती। प्रेम ही करती किसी से, कोई उस से प्रेम करता। अल्हड़ बन इधर-उधर घूमती ही सही। खिलखिला कर हँसती रहती पागलों की तरह। या कोई किताब पढ़ के सोच में डूबी रहती। या घर में सबसे छोटी होने के कारण सबसे लड़ती रहती। या छत पर खड़ी हो कर किसी लड़के की साँसे रोक देती। कुछ तो करती। कम से कम 22-23 की उम्र में अपने बेटे का पिछवाड़ा धोने और 27-28 कि उम्र में उसको स्कूल के लिए तैयार करने से तो बेहतर ही करती कुछ भी।</p>
<p dir="ltr">माँ ने जो किया वो भी कम साहस का काम नहीं है, त्याग किया, अपने बच्चे की ख़ातिर बलिदान किया पर ये सब बक़वास बातें हैं जो हम सबने उन 'लड़कियों' के पर काटने के बाद उनके दिमाग में भर दी है consolation prize के जैसे।</p>
<p dir="ltr">आज मदर्स डे है, सबको प्यारी-प्यारी बातें करते देख रहा हूँ अच्छा लग रहा है। मुझे पता है कि कोई भी झूठ नहीं बोल रहा है; अपनी माँ से भला कौन प्यार नहीं करता। मैं भी करता हूँ। उस औरत का चेहरा खुशियों से खिलखिलाता रहे, इस से बढ़ कर ज़िन्दगी में और कोई ख़्वाहिश नहीं है मेरी। लेकिन मैं अपनी माँ के 42 के चेहरे में उसकी 18 की उम्र वाली हँसी ढूँढता हूँ, जो मैंने सिर्फ़ पुरानी तस्वीरों में ही देखी है। मैं ये कतई बर्दाश्त नहीं कर सकता कि उस तस्वीर वाली लड़की का अल्हड़पन मेरी जिम्मेदारियां ढ़ोते-ढ़ोते कहीं गुम हो गयी। ये जानना मुझे कतई गंवारा नहीं कि जब  वो लड़की अपने ज़वानी के चरम पर थी तो मैं बग़ल से मम्मी खाना दो चिल्ला रहा था। मैं हर पल ये चाहता हूँ कि काश मेरी माँ ने वो अपनी ज़वानी के दिन बिना मेरी जिम्मेदारी के बिताये होते। और किसी के साथ नहीं तो, मेरे पापा के साथ ही खुल के रोमांटिक हुई होती।</p>
<p dir="ltr">मदर्स डे है, मैं जानता हूँ ये शायद संभव नहीं है, पर फिर <u>भी</u> माँ से यही वादा करूँगा कि मैं माँ के दिये असीमित प्यार के बदले में कभी कुछ दे पाया, उसको कुछ लौटा पाया, तो उसको उसकी ज़वानी लौटाऊंगा।</p>
<p dir="ltr">'उसी बेपरवाह हंसी वाली लड़की का बेटा'<br>
- हिमांशु</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-4821771385890445532017-02-22T11:15:00.001-08:002017-09-01T07:14:59.911-07:00मैं और ईश्वर?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr">
मैं,<br>
मैं कोई तुम्हारा भगवान नहीं हूँ।<br>
ना तुम्हारी ये दुनिया मेरे इर्द गिर्द घूमती है।<br>
तुमसे मैं प्यार भी नहीं करता।<br>
तुम्हारा होना ना होना,<br>
मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता।</div>
<div dir="ltr">
ऐसा नहीं है कि मुझे यक़ीन नहीं है मेरे भगवान होने पर।<br>
ये सोचना कि ये सब कुछ मैंने बनाया है,<br>
आज भी ऊर्जा से भर देता है मुझे।<br>
पर सच यही है कि,<br>
मैंने कुछ नहीं बनाया।<br>
पहले तुमने मेरा नाम रखा,<br>
फिर मैंने खुद को बनाया।<br>
पर ये दुनिया,<br>
ये तो पहले भी थी,<br>
और मेरे बाद भी रहेगी।</div>
<div dir="ltr">
- हिमांशु</div>
</div>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-67139110490362088692017-02-22T11:12:00.001-08:002017-02-22T11:25:58.403-08:00ये उनकी बेरूख़ी के नाम<p dir="ltr">आज की रात फ़िर जाग कर गुज़ारी है,<br>
चलो उनकी टाइमलाइन पर टहल के आते हैं।</p>
<p dir="ltr">इनबॉक्स में जो भेजा था उनको हाल-ए-दिल,<br>
चलो फ़िर से वही पढ़ के मुस्काते हैं।</p>
<p dir="ltr">हमारे इश्क़ की फ़िर बेकदरी की है उन्होंने,<br>
चलो उनको उनका कहा याद दिलाते हैं।</p>
<p dir="ltr">रिप्लाई छोड़िए, लाइक तक करना भूल गए वो,<br>
चलो हम ही लव वाला रिएक्शन दे कर आते हैं।</p>
<p dir="ltr">क्या पता पढ़ लें साहिबान ये पोस्ट,<br>
चलो इसी उम्मीद में ये दिन भी बिताते हैं।</p>
<p dir="ltr">- हिमांशु</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-12359043965049099672017-02-22T11:04:00.001-08:002017-02-22T11:04:54.217-08:00ये.. तुम्हारी मेरी मुसीबतें..<p dir="ltr">तुम भी काश मेरी मुसीबतों सी होती..<br>
बिन बुलाए रोज़ मेरे पास चली तो आती..</p>
<p dir="ltr">या कमसकम तुम्हारा प्यार ही मुसीबत होता..<br>
हर रोज़ खुदबखुद मेरे लिए बढ़ तो जाता..</p>
<p dir="ltr">या हमारी मुलाकात मुसीबतों की तरह होती..<br>
हर शाम मिलते ही तुम मुझपे टूट तो पड़ती..</p>
<p dir="ltr">या फिर हमारी ये दूरियाँ ही मुसीबत हो जाती..<br>
एक दिन तुम इनसे छुटकारा तो पा लेती..</p>
<p dir="ltr">या हमारी कहीं खोयी नोंक-झोंक ही मुसीबतें बन जाती..<br>
इसी बहाने कभी कम होने का नाम तो न लेती..</p>
<p dir="ltr">और कुछ नहीं तो..<br>
तुम्हारा चेहरा ही मुसीबत होता..<br>
पहाड़ बन के मेरे सामने तो रहता..</p>
<p dir="ltr">- #हिमांशु</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-27342446691620173362017-01-26T00:41:00.001-08:002017-01-26T00:41:48.941-08:00AFSPA<p dir="ltr">2004 की बात है। 7-8 साल की उम्र थी मेरी और वो बचपन का समय था जब हर कोई मुझसे पूछता था कि बेटे बड़े होकर क्या बनोगे और मैं भी तब तक "बॉर्डर," "माँ तुझे सलाम,"इंडियन," और "द हीरो" जैसी फ़िल्में कई मर्तबा देख चुका था, इसीलिये कई जवाबों में एक ज़वाब आर्मी ज्वाइन करना भी होता था। मैं तब क्लास 3 में बस प्रोमोट ही हुआ था कि 2004 के जनरल इलेक्शन्स शुरू हो गए थे। हमारे स्कूल में सैन्य बलों का कैंप लग गया था और स्कूल बंद हो गया था। हमारी ख़ुशी की इन्तेहाँ नहीं थी। मेरे घर के पास एक कॉलेज है जिसके छोटे से ग्राउंड में हम कभी-कभार क्रिकेट खेला करते थे और हमारा शार्ट-कट रास्ता भी उसी ग्राउंड से हो कर था। वहां भी कैंप लगा था।</p>
<p dir="ltr">स्कूल तो बंद हो ही गया था, हमारा उस रास्ते से हो कर जाना भी बंद हो गया था। लगभग एकाध महीने तक चारों ओर फ़ौज थी। इतनी फैज़ मैंने इस से पहले बस फिल्मों में ही देखी थी। INSAS rifle का बस नाम सुना था बड़े भाईयों से, वो देखने मिल रहा था। शुरू-शुरू में तो बड़ा कूल लगता था पर फ़िर धीरे-धीरे असहजता महसूस होनी लगी थी क्योंकि कोई डरपोक ना कहे इसीलिये जाता मैं तो उसी शॉर्टकट वाले रास्ते ही था पर जाने में डर से मेरी जो हालत होती थी ये मैं ही जानता था।</p>
<p dir="ltr">फ़िर जब स्कूल ज्यादा बंद हो गया तो स्कूल वालों का हमारी पढाई और सिलेबस की चिंता होने लगी। जवानों से आग्रह किया गया कि वो स्कूल आवर्स में अपने बसों में बैठ जाए या ग्राउंड में रहे ताक़ि क्लासेस चल सके। जवानों का क्या है, अच्छे भले लोग थे मान गए। अब जब हम स्कूल जाते तो पूरा ग्राउंड सेना की बसों से और जवानों से भरा था। कुछ जवान बंदूकें लेकर पहरा देते स्कूल भर में और कुछ जवान बसों के नीचे लेट कर पत्ते खेलते। उन्होंने कभी हमें डिस्टर्ब नहीं किया। पर वो, वो उम्र थी जब लंच ब्रेक में बिना दोस्तों के साथ कुछ खेले लगता ही नहीं था कि स्कूल आये हैं। पर चारों ओर बंदूकों के पहरे से डर भी लगता था।  कई बार मन किया कि जवानों से जा कर कहूँ एक बार असली बन्दूक की असली गोली दिखाने को पर डर लगता था। कुछ दोस्त कहते थे कि उनकी बस के तरफ़ जाओगे तो गोली मार देंगे तुमको और हमारी डर से गीली हो जाती थी।</p>
<p dir="ltr">ख़ैर, धीरे-धीरे वो एक-डेढ़ महीने का समय निकल गया और जवान वापस लौट गए। हमारा ग्राउंड फिर हमारा था और हम फ़िर से भयमुक्त हो कर खेल सकते थे।</p>
<p dir="ltr">धीरे-धीरे मैं थोड़ा बड़ा हुआ तो पता चला कि AFSPA नाम का कोई कानून है जो कई राज्यों में लागू है। फिर पता चला कि ईरोम शर्मिला नाम की कोई महिला इसके विरोध में सालों से भूख हड़ताल पर है। ये न्यूज़ मेरे काम की नहीं थी इसीलिये मैंने ज्यादा पढ़ना जरुरी नहीं समझा।<br>
जब 9-10th तक पहुँचा तो स्कूल में सर ने बताया कि AFSPA में हर समय चारो ओर आर्मी रहती है। ये सही था या ग़लत ये उन्होंने नहीं था क्योंकि शायद उनके बस का नहीं था। तब तक मेरे चाचा भी नागालैंड से अपना बिज़नेस wind-up कर के लौट चुके थे। कुछ बातें उन्होंने बताई नार्थ-ईस्ट के हालात के बारे में। कुल मिला कर मैं तब तक ये समझ नहीं पाया था कि AFSPA बुरा है या अच्छा है।</p>
<p dir="ltr">पिछले साल कई ऐसी घटनाएं हुई जिस ने सेना और देश के प्रति लोगों की ईमानदारी को अपने अपने तरह से डिफाइन कर दिया था। JNU ROW हो या कश्मीर घाटी में लोगों का सेना पर पत्थर चला के बदले में अपनी आँखे फोड़वा लेना हो, देशभक्ति और देशद्रोह के बीच AFSPA भी खूब चर्चे में रहा।</p>
<p dir="ltr">अब जब मैं बचपन के उस एक महीने का रेट्रोस्पेक्ट करता हूँ तो लगता है कि मैं तो बस एक महीने तक सिर्फ कुछ घंटे ही सेना से घिरा रहता था फ़िर भी मेरी हालत ढ़ीली रहती थी। और इस देश की एक बड़ी आबादी, जिसमें लाखों बच्चे होंगे, सालों से उसी डर से साये में है। जब भी मैं सोचने की कोशिश करता हूँ कि कैसा होगा इस तरह से जीना कि एक मिनट के लिए भी घर से बाहर निकलो तो कोई सामने बन्दूक लिए खड़ा मिले, तो मैं उन बच्चों के डर के अनुमान तक नहीं लगा पाता हूँ। एक बार के लिए तो ये भी लगता है कि जो बच्चा पैदा होते ही हर तरफ़ बन्दूक ही देख रहा है, वो बाद में बन्दूक नहीं उठाएगा तो क्या करेगा। (पर ये पूरी तरह से मेरी भावनात्मक सोच है, आप इस से अलग राय रख सकते हैं। आपका अधिकार है।)<br>
हम बस यहाँ अपने-अपने घरों में टीवी देख के उन लोगों, उन औरतों और बच्चों को कोसते रहते हैं, उनकी देशभक्ति तय करते रहते हैं पर हम सबको इस बात का एक रत्ती भी ज्ञान नहीं है कि उनको कैसा लगता है हर समय बंदूकों से घिरे रहने में।</p>
<p dir="ltr">ख़ैर, ज्यादा लोड मत लीजिये। ये सब सरकारी समस्या है। मौसम बढ़िया है, लुफ़्त उठाईये। बस ऐसेहीं कल से व्हाट्सएप्प पर रिपब्लिक डे वाले बधाई संदेश आ रहे थे तो मुझे ये बात याद आ गयी।</p>
<p dir="ltr">आप सबको गणतंत्र दिवस की ढेरों शुभकामनायें। सुरक्षित रहिये, मुस्कुराते रहिये। जय हिंद।</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-20521466209484318332017-01-24T16:22:00.001-08:002017-01-25T13:03:30.678-08:00मैं तुम्हारा कवि नहीं हूँ<p dir="ltr">मैं तुम्हारा कवि नहीं हूँ।<br>
तुम्हारी ये उम्मीद मुझसे<br>
फ़ालतू है<br>
कि मेरी कविता तुम्हारे लिए नाचेगी।<br>
ये मेरी कविता है।<br>
पर तुम इसे मेरा भोंपू समझो।<br>
मेरी ये कविता मेरे हिसाब से बोलेगी।<br>
मैं चाहूंगा तो गधे के ढेंचू में लय ढूंढेगी,<br>
या किसी बजबजाते नाले की तरह बदबू देगी। <br>
पर ये तुम्हारे आगे नहीं नाचेगी।</p>
<p dir="ltr">खोखले उम्मीदों की लिपा-पोती भी मेरी मर्ज़ी से होगी।<br>
और ठरक की मात्रा भी मैं ही तय करूँगा।<br>
तुम्हारे बाल खुले रखने से मेरी कविता का<br>
कोई लेना देना नहीं है।<br>
तुम्हारे स्तनों के बीच फंसा लॉकेट,<br>
मेरी कविता नहीं निकालेगी।<br>
तुम चाहे जो कर लो,<br>
मेरी कविता तुम्हारी मेहंदी का रंग गाढ़ा नहीं करेगी।<br>
तुम चाहो तो नसें काट लो अपनी,<br>
या रो-रो कर गला फाड़ लो अपना।<br>
बता दो सबको मैं कितना गिरा हुआ था,<br>
ले लो सबकी झूठी सहानुभूति<br>
ख़्वाब पाल लो मुझे पछाड़ देने के।<br>
मेरी कविता तुम्हारे सारे भ्रम तोड़ देगी।<br>
मेरी कविता तुम्हारे आगे नहीं नाचेगी।<br>
क्योंकि मैं,<br>
तुम्हारा कवि नहीं हूँ।</p>
<p dir="ltr">:- #हिमांशु</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-47861370586442763422017-01-24T16:21:00.001-08:002017-01-24T16:21:01.386-08:00हताश हो चली कविता<p dir="ltr">तंग हो चला हूँ<br>
तुम्हारी रिवाजों को मानते मानते।<br>
खीज गया हूँ<br>
अपने कर्मों का फल देख देख।<br>
पर थका नहीं हूँ मैं,<br>
विद्रोह करते करते,<br>
तुमसे भी और खुद से भी।<br>
तुमसे तो काफ़ी पहले<br>
शुरू कर दिया था,<br>
अब खुद से भी कर रहा हूँ।<br>
सफ़लता से कदम नहीं चुमवाना है मुझे,<br>
ना ही तुम्हारी छद्म वाहवाही चाहिए।<br>
मुझे मेरे हिस्से का मेहनताना चाहिए।<br>
संतोष से बड़ा कोई सुख नहीं कहते हैं,<br>
पर मुझे मेरा असंतोष ही बरक़रार चाहिए।</p>
<p dir="ltr">: - #हिमांशु</p>
Hhttp://www.blogger.com/profile/02870807285577541699noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1313364483473928537.post-56989941391644112302017-01-20T18:44:00.001-08:002017-01-21T02:20:39.208-08:00तथा-कथित छोटे शहर से बिलॉन्ग करने की बकचोदी<p dir="ltr">झरक जाता है मेरा जब कोई पटना, रांची, कानपूर, लखनऊ वाला खुद को छोटे शहर का कहता है तो।</p>
<p dir="ltr">मेरे भाई, तुम्हारा स्टेट चाहे कितना भी चूतिया हो, घटिया हो या पिछड़ा हो, एक बात जान लो, तुम पर उसका घंटा फर्क नहीं पड़ता क्योंकि तुम उस छोटे से पिछड़े स्टेट की राजधानी में बैठे होते हो। जिस पटना,रांची, लखनऊ, कानपूर, बनारस, इंदौर को तुम छोटा शहर कह के फ़ालतू की सिम्पथी लेते और देते हो ना, उन्हीं तथा-कथित छोटे शहरों में हम सही में छोटे शहर या गांव वाले जाते हैं तो पहली बार जान पाते हैं कि सड़के ऐसी होती हैं, BMW, Mercedes सामने से कैसा दिखता हैं, इमारतें 20 मंजिली भी होती हैं और इतने बड़े-बड़े स्कूल और उनकी इतनी बड़ी बड़ी बसें भी होती हैं। हमलोग तुम्हारे उन तथा-कथित छोटे शहरों के बस सपने ही पाल रहे होते हैं कि 10th के बोर्ड में अच्छा नंबर ले आएंगे तो आगे इंजीनियरिंग या मेडिकल की तैयारी करने पटना/रांची/लखनऊ/कानपूर/बनारस/भोपाल/इंदौर के अच्छे कोचिंग सेंटर में जाएंगे या +2 वहां के किसी नामी स्कूल से करेंगे।</p>
<p dir="ltr">और तुम जो ये सुविधाएं नहीं होने का रोना रोते हो ना भाई,  तो एक बात ये भी बता दें कि चलो माने हम कि तुम्हारे शहर में बड़े-बड़े क्रिकेट क्लब नहीं थे, या ईडन गार्डन जैसा स्टेडियम नहीं था, या वहां Sunburn जैसा इवेंट नहीं हो रहा है पर कम से कम तुम्हारे पास पढ़ने के लिए अच्छे स्कूल तो थे। अंग्रेजी कान्वेंट तो थे। स्कूल में ही सही, पर क्रिकेट, बैडमिंटन, बास्केटबॉल, टेबल-टेनिस जैसे खेल तो खेलते थे। हर साल Annual Day पर नाचने-गाने का मौका तो दिया जाता था। हम जिस शहर से आते हैं वहां 2005 या 2006 में जब मेरे स्कूल को सीबीएसई से 12th तक की मान्यता मिली थी तब वो हमारे पुरे वैशाली ज़िले का पहला और एकमात्र ही स्कूल था। तुम्हारे पटना-रांची में 1850s से कान्वेंट चल रहे हैं। तुम्हारा कानपूर उत्तर-भारत का दूसरा सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल टाउन है। बनारस तो ना जाने कौन से काल से बसा हुआ है। BHU जैसा सेंट्रल यूनिवर्सिटी है, सनबीम जैसा स्कूल है जिसके लिए हम देहाती लोगों में से फॉर्म भी बहुत कम ही लोग भर पाते हैं। और लखनऊ तो खैर राजधानी ही है। हमलोग तो आज तक बस खो-खो और कबड्डी का ही टीम पूरा रहे हैं। और गाँव के बच्चों की तो बात ही मत पूछो क्योंकि तुम्हारे लिए वो तो exist ही नहीं करते।</p>
<p dir="ltr">हर शाम जब तुम रिफ्रेशमेंट के नाम पर कार्टून नेटवर्क पर टॉम एन जेरी देखते थे ना भाई, हमारे यहाँ तब पढ़ने के लिये भी बिजली नहीं होती थी। लालटेन नामक चीज़, जिसका तुम सब नामे सुने हो और कभी-कभार गांव गए होगे तो देखे होगे, हमलोग पूरा बचपन उसी को जला के "राजा-मंत्री-चोर-सिपाही" खेले हैं। तुमलोग अभी जिन टीवी शोज़ के memes पर नॉस्टैल्जिक और प्राउड टू बी ए 90s किड करते हो ना, वो हम तक या तो कभी पहुंचे ही नहीं या फिर हमने उनको टोरेंट काल में आ कर के देखा। अंग्रेजी फ़िल्में भी हमारे यहाँ महीनों या सालों बाद चूतिये से हिंदी वाले नाम के साथ पहुँचती थी।</p>
<p dir="ltr">धोनी तुम्हारा हीरो है क्योंकि वो भी तुम्हारी तरह एक तथा-कथित छोटे से शहर रांची का है। तो एक बात ये भी बता दें तुमको कि धोनी आज जो भी है वो सिर्फ इसलिए नहीं है क्योंकि उसने बहुत मेहनत की है बल्कि वो यहाँ तक इसीलिए भी पहुँच पाया क्योंकि वो एक रांची एक ऐसे स्कूल में पढ़ पाया जो पहले भी IITians देने के लिए नामी था। वो ऐसे स्कूल के पढ़ा जहाँ क्रिकेट के स्पेशल कोच होते थे और उस स्कूल का अपना क्रिकेट स्टेडियम था। वो एक ऐसे स्कूल में था जो उस समय (और आज भी) बिहार (अब बिहार-झारखण्ड) के सबसे नामी स्कूलों में से एक था। जिसमे एडमिशन लेने के लिए दोनों स्टेट के हजारों बच्चे अभी भी फॉर्म भरते हैं और एडमिशन नहीं मिल पाता है। धोनी जिस मध्यम-वर्गीय परिवार से निकल कर यहाँ तक पहुँचा वो बेशक अद्वितीय कहानी है पर उसका शहर कहीं से छोटा नहीं था। धोनी झारखण्ड से था पर आदिवासी नहीं था।</p>
<p dir="ltr">हाँ माने कि तुम्हारा शहर दिल्ली, बम्बई या न्यूयॉर्क, लन्दन नहीं था पर जो भी मिला तुमको वो कम भी नहीं था। जहाँ पुरे स्टेट में बिजली सालों-साल नहीं आती थी वहां तुम्हारे शहर में शौकिया स्ट्रीट-लाइट्स होती थी। तुमलोग जब दिल्ली-बम्बई जाते हो एकदम धाक से अपना पटनिया, कनपुरिया स्वैग झाड़ते हो, लखनऊ वाली नवाबी दिखाते हो और हमलोग जैसे लोग अपने शहर का नाम बोलते हैं तो लोग नाम ही नहीं सुने होते हैं। ज्यादातर समय हमारे शहरों को गांव ही कह दिया जाता है।</p>
<p dir="ltr">इसीलिए भाई जितना मिला है तुमको उसमे खुश रहो, अपने माता-पिता के शुक्रगुज़ार रहो और ये छोटे शहर से होने का चुतियाप बंद करो।</p>
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