Tuesday, August 29, 2017

कि तुम मेरी कोई नहीं

मैं क्यूँ भूल जाता हूँ हमेशा,
कि तुम्हारे बिना भी ज़िंदगी है,
कि तुम्हारे अलावा भी लोग हैं,
कि तुम्हारे बिना भी दिन ढ़ल ही रहा है,
रात गुज़र ही रहे हैं,
कि तुमसे पहले भी कोई था,
और तुम्हारे बाद भी कोई होगा।

मैं क्यूँ भूल जाता हूँ हमेशा,
कि तुम अब किसी और की हो
और मेरी तुम्हारी अब कोई कहानी बाक़ी नहीं।
मैं क्यूँ भूल जाता हूँ हमेशा,
कि जो ग़लतफ़हमियाँ मैंने पाल रखी थीं तुम्हारे होने की,
वो महज़ गलतफहमियों के और कुछ नहीं थी,
और तुम जो मेरे पास आती दिख रही थी,
दरअसल एक स्वप्न था जो मैं खुले आखों से देख रहा था।
मैं क्यूँ भूल जाता हूँ हमेशा,
कि ये मेरा इंतेज़ार कभी ख़त्म नहीं होगा,
और मेरी सब बातें बिना कहें दफ़्न हो जाएंगी,
कि जब मेरी सांसें धीमें-धीमें साथ छोड़ देंगी,
तुम तब भी किसी और के ज़ीवन का उजाला बन सब कुछ रौशन कर रही होओगी।

मैं क्यूँ भूल जाता हूँ हमेशा,
कि किसी का पराया ना लगना और उसका अपना होना
दोनों दो बातें हैं,
और भले ही तुमको अपना मान कर मैंने अपना सब कुछ कह दिया हो,
भले ही तुमको अपना मान कर मैंने अपना सब कुछ मान लिया हो,
भले ही तुमको अपना मान कर मैंने अपनी सैकड़ों रातें तुम्हारे नाम कर दिए हो,
भले ही तुमको अपना मान कर मैंने अपनी कहानी में तुमको लाने की बेइंतहां कोशिशें की हो,
सच्चाई, कि तुम मेरी कोई नहीं हो,
कभी नहीं बदल सकती।
और ये भी कि,
जीवन के इस बेरंग और बोझिल से सफऱ में,
मुझे अकेले ही चलना है,
और एक दिन अकेले ही मर जाना है।
क्योंकि सच्चाई यही है कि
इस सफ़र में तुम कभी मेरी हमसफ़र नहीं हो सकती।
तुम कभी मेरी नहीं हो सकती।

क्यूँ बस इतना याद रहता है मुझे हमेशा,
कि तुम्हारे बिना कोई ज़िंदगी नहीं है
कि तुम्हारे अलावा इस दुनिया में मेरे लिए और कोई नहीं है
कि तुम्हारे बिना ये दिन मुझ पर भारी पड़ते हैं
और ये रातें गुज़ारनी मेरे बस की नहीं है
कि तुमसे पहले तुम जैसा कोई न था
और न तुम्हारे बाद कोई होगा

(शायद इसलिए
क्योंकि तुम बाकियों जैसी लाखों करोड़ों में एक नहीं हो,
बल्कि तुम वो सौग़ात हो,
जो जीवन में एक बार और बस एक बार मिलती है,
और हर किसी को नहीं मिलती।
और मुझे वो "हर किसी" नहीं बनना मंज़ूर नहीं। )

~ हिमांशु

1 comment:

  1. पराया न लगना और अपना होना। जान डाल दी तुमने इस वाक्य से

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