मैं जब भी ये गाना सुनता हूँ, और मैं ये गाना हर रोज़ सुनता हूँ, मुझे अफ़सोस होता है। दिल्ली शहर से मैंने खूब इश्क़ किया है, इस शहर को मैंने हद तक जिया है, लेकिन मैं इस दिल्ली शहर में इश्क़ नहीं कर पाया। मैं इस शहर में इश्क़ को नहीं जी पाया। ऐसा नहीं है कोशिश नहीं कि, पर असफल ही रहा। ना ये शहर कल का कल ख़त्म हो रहा है ना ही मैं, लेक़िन अब ये नाउम्मीदी आ गयी है कि इस शहर में कभी इश्क़ नहीं जी पाऊँगा। और मुझे अब कोई खास फ़र्क भी नहीं पड़ता पर जब ये गाना अपने अंत तक पहुँच रहा होता है और "तुझसे मिलना पुरानी दिल्ली में" वाली लाइन आती है तो एकदम से अंदर कहीं कुछ खटकने लगता है। लगता है अभी तो काफ़ी कुछ करना बाक़ी रह गया इस शहर में जिसके बिना अब तक जो भी किया सब अधूरा है। गुलज़ार साहब को ऐसा प्यारा गाना लिखने के लिए बद्दुआएं लगेंगी मेरी।
~ हिमांशु
~ हिमांशु
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