Friday, January 12, 2018

प्रेम की तीन कविताएँ!

I.

तुम्हारी जरूरत
मेरे बिस्तर को नहीं,
मेरी बाजुओं को है।
जो ये खाली-खाली सा
महसूस होता रहता है,
मेरे सीने से तुम्हारे सीने
के टकराने पर ही भरेगा।
ये आँखें अब दुनिया की गंदगी
देखना नहीं,
तुम्हारी आँखों में देखना चाहती हैं।
ये आंसू जो अंदर रुके हैं,
तुमसे
लिपटने के बाद ही
पलकों की दहलीज़ लांघ
बाहर आएंगे।
मेरा कंधा
कभी तुम्हारे कंधे पर
टिकना चाहता है,
तो कभी
तुम्हें अपना सर टिकाने
कि जगह देना चाहता है।
मेरे होंठ,
तुम्हारे होंठों से पहले
तुम्हारी आंखें चूमना चाहते हैं।
मेरी उंगलियाँ,
तुम्हारे बालों से गुज़रने से पहले
तुम्हारी उंगलियों
का भरोसा जीतना चाहती हैं।
दिसंबर की किसी सर्द रात में,
तुम्हारे साथ
कहीं घूमने के बाद,
तुम्हें जाते देखने से पहले
मेरी साँसे,
तुम्हारे ठंडे और
ग़ुलाबी हो चुके चेहरे,
के एकदम पास जा कर
तुम्हारी साँसों में
मिल जाना चाहती हैं।

II.

मेरा बिखरा पड़ा कमरा
और मेरी थोड़ी सी
बिखरी हुई ज़िन्दगी
को तुम्हारी डाँट की दरकार है।
अटैची में रखी वो एक्स्ट्रा लार्ज शर्ट
और किचन में पड़ा कॉफ़ी मग
चाहते हैं कि
तुम उन्हें अपना लो।
किताबें इस उम्मीद में हैं
कि एकदिन उन्हें
तुम्हारे चश्में से पढ़ा जाएगा।
नीचे जो मैंने गद्दे बिछा रखे हैं,
उनको
हम दोनों को फ़िल्मी
होते देखना है।
तकियों को
ग़ैर-जरूरी होना है,
और ईयरफोन्स को शेयर।
फेसबुक को गॉसिप्स चाहिए,
इंस्टाग्राम को गोल्स!
व्हाट्सएप्प को इग्नोर होना है।
मेरे पड़ोसियों को
तुम्हें सीढ़ियों पर देख
मकानमालिक से शिकायत करनी है।
दिल्ली की सड़कें,
सीपी के सर्कल्स,
मेरे कॉलेज की लाइब्रेरी,
मेट्रो के कैमरे,
सबको गवाह बनना है।
और जैसे मेरी बातों में
कब से बस तुम हो,
मुझे भी
कब से बस
तुम्हारा होना है।

III.

मैं
काफ़ी दूर खड़ा हूँ,
इन बातों से,
ऐसी उम्मीदों से।
आंखों के सामने समंदर है
जिसका अंत
मुझे नज़र नहीं आ रहा।
मेरे आसपास भीड़ है
उम्मीद में खड़े लोगों की,
नाउम्मीद हो चुके लोगों की,
सब इंतेज़ार में हैं
और समंदर को ताक रहे हैं।

समंदर की ठंडी हवाओं
का सुकून जला देने वाला है।
तुम्हारे लिए
मेरे प्रेम की तरह।

जलना,
इंतेज़ार करना,
प्रेम करना,
सब हिम्मत की बात है।

मैं काफ़ी दूर खड़ा हूँ
तुम्हारे प्रेम में,
तुम्हारे इंतेज़ार में,
जलता हुआ।

~ हिमांशु

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