तार पर बैठी कबूतर
रो रही है
कल किसी ने उसके साथी के डैने नोच डाले
सर काट के साथ ले गया
और उसके बच्चों को खा गया।
खून के लथपथ उसकी लाश को
उसके घोंसले से उठा कर
मैंने ही फ़ेंका था।
घोंसले में बिखरे उसके पंख
और उसके बच्चों की बीट
अभी साफ़ होनी बाक़ी है।
कबूतर तब से घोंसले में नहीं लौटी,
तार पर बैठी है।
किसी की हत्या हो गयी।
कोई सनकी बन फ़रार हो गया।
चार लोग
आत्मा की गवाही सुन
बचाने आये हैं।
कहते हैं सब ख़तरे में है।
सामने नाली में
सुअर
मस्त कीचड़ खा रहे हैं।
~ हिमांशु
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