Wednesday, January 31, 2018

जिसमें तुम नहीं हो!

एक कविता है
जो मैं लिखना चाहता हूँ
पर मुझसे लिखी नहीं जा रही है

हमारी आख़िरी मुलाकात की ये आख़िरी कविता
जिसमें मुझे उस मुलाकात के पहले और बाद कि बातें बतानी हैं
जिसमें हमारे बीच हुई सारी बातों के मायने समझने हैं
जिसमें मुझे तुमको जी भर के देख लेने की ख़ुशी बयान करनी है
जिसमें मुझे तुमसे लिपट कर रो नहीं पाने का अफ़सोस जताना है
जिसमें मुझे तुमसे कहना है कि तुमने बड़ा दिल दुखाया है मेरा
जिसमें मुझे मर जाना है पर फ़िर कभी तुमको नहीं देखना है
जिसमें अब मुझे कोई इंतेज़ार नहीं है
जिसमें मुझे पूरी ज़िन्दगी तुम्हारा इंतेज़ार करना है

एक और कविता है
जो मैं नासमझों की तरह
खुश हो कर लिखना चाहता हूँ

जिसमें मुझे अपनी आदत से परे, सब अच्छा-अच्छा सोचना है
जिसमें मुझे तुम्हारी छोटी-छोटी बातों में अपने लिए प्यार ढूँढना है
जिसमें मुझे याद करना है हमारे बीच हुई लंबी-लंबी चैट्स को
जिसमें मुझे तुमसे फ़िर से पूछना है मिलने के लिए
और तुमको फ़िर से कहना है कि तुमने पहले क्यूँ नहीं पूछा
जिसमें तुमको अगले महीने कह के अगले ही दिन मुझसे मिलने आना है
जिसमें तुमको एक साल में पहली बार मुझे फ़ोन करना है
जिसमें तुमको अपने ऑफिस से उस दिन जल्दी भागना है
जिसमें तुमको भी मुझसे मिलना है
जिस कविता में सब अच्छा होना है

एक आख़िरी कविता है
जो मैं इस यक़ीन में लिखना चाहता हूँ
कि तुम भी मुझसे प्यार करती हो

जिसमें तुमको मुझसे मिलने अपनी माँ के कपड़ों में आना है
जिसमें तुमने सोच रखा है कि हम अगर कभी मिलते तो कहाँ मिलते
जिसमें तुमको पता है कि मैं आज से पहले जो कुछ भी लिखता रहा हूँ सब तुम्हारे नाम का है
जिसमें तुमको अपना दिल साफ़ कर लेना है पिछली सारी बातें बता के
जिसमें तुमको मुझसे नज़र मिल जाने के डर से इधर-उधर देखना है
जिसमें तुमको मुझे मनाना है कि मैं तुमसे प्यार करना छोड़ दूँ
और जिसमें तुमको अंदर ही अंदर चाहना है कि ऐसा कभी ना हो
जिसमें तुमको मुझसे गले ना मिल पाने का अफ़सोस करना है
जिसमें तुम मुझे प्यार करती हो
और जिसमें तुम चाहती हो मैं कहता रहा हूँ कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ

तुम जैसा कठोर दिल होता तो शायद लिख लेता ये सारी कविताएँ

~ हिमांशु

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