Friday, January 20, 2017

तथा-कथित छोटे शहर से बिलॉन्ग करने की बकचोदी

झरक जाता है मेरा जब कोई पटना, रांची, कानपूर, लखनऊ वाला खुद को छोटे शहर का कहता है तो।

मेरे भाई, तुम्हारा स्टेट चाहे कितना भी चूतिया हो, घटिया हो या पिछड़ा हो, एक बात जान लो, तुम पर उसका घंटा फर्क नहीं पड़ता क्योंकि तुम उस छोटे से पिछड़े स्टेट की राजधानी में बैठे होते हो। जिस पटना,रांची, लखनऊ, कानपूर, बनारस, इंदौर को तुम छोटा शहर कह के फ़ालतू की सिम्पथी लेते और देते हो ना, उन्हीं तथा-कथित छोटे शहरों में हम सही में छोटे शहर या गांव वाले जाते हैं तो पहली बार जान पाते हैं कि सड़के ऐसी होती हैं, BMW, Mercedes सामने से कैसा दिखता हैं, इमारतें 20 मंजिली भी होती हैं और इतने बड़े-बड़े स्कूल और उनकी इतनी बड़ी बड़ी बसें भी होती हैं। हमलोग तुम्हारे उन तथा-कथित छोटे शहरों के बस सपने ही पाल रहे होते हैं कि 10th के बोर्ड में अच्छा नंबर ले आएंगे तो आगे इंजीनियरिंग या मेडिकल की तैयारी करने पटना/रांची/लखनऊ/कानपूर/बनारस/भोपाल/इंदौर के अच्छे कोचिंग सेंटर में जाएंगे या +2 वहां के किसी नामी स्कूल से करेंगे।

और तुम जो ये सुविधाएं नहीं होने का रोना रोते हो ना भाई,  तो एक बात ये भी बता दें कि चलो माने हम कि तुम्हारे शहर में बड़े-बड़े क्रिकेट क्लब नहीं थे, या ईडन गार्डन जैसा स्टेडियम नहीं था, या वहां Sunburn जैसा इवेंट नहीं हो रहा है पर कम से कम तुम्हारे पास पढ़ने के लिए अच्छे स्कूल तो थे। अंग्रेजी कान्वेंट तो थे। स्कूल में ही सही, पर क्रिकेट, बैडमिंटन, बास्केटबॉल, टेबल-टेनिस जैसे खेल तो खेलते थे। हर साल Annual Day पर नाचने-गाने का मौका तो दिया जाता था। हम जिस शहर से आते हैं वहां 2005 या 2006 में जब मेरे स्कूल को सीबीएसई से 12th तक की मान्यता मिली थी तब वो हमारे पुरे वैशाली ज़िले का पहला और एकमात्र ही स्कूल था। तुम्हारे पटना-रांची में 1850s से कान्वेंट चल रहे हैं। तुम्हारा कानपूर उत्तर-भारत का दूसरा सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल टाउन है। बनारस तो ना जाने कौन से काल से बसा हुआ है। BHU जैसा सेंट्रल यूनिवर्सिटी है, सनबीम जैसा स्कूल है जिसके लिए हम देहाती लोगों में से फॉर्म भी बहुत कम ही लोग भर पाते हैं। और लखनऊ तो खैर राजधानी ही है। हमलोग तो आज तक बस खो-खो और कबड्डी का ही टीम पूरा रहे हैं। और गाँव के बच्चों की तो बात ही मत पूछो क्योंकि तुम्हारे लिए वो तो exist ही नहीं करते।

हर शाम जब तुम रिफ्रेशमेंट के नाम पर कार्टून नेटवर्क पर टॉम एन जेरी देखते थे ना भाई, हमारे यहाँ तब पढ़ने के लिये भी बिजली नहीं होती थी। लालटेन नामक चीज़, जिसका तुम सब नामे सुने हो और कभी-कभार गांव गए होगे तो देखे होगे, हमलोग पूरा बचपन उसी को जला के "राजा-मंत्री-चोर-सिपाही" खेले हैं। तुमलोग अभी जिन टीवी शोज़ के memes पर नॉस्टैल्जिक और प्राउड टू बी ए 90s किड करते हो ना, वो हम तक या तो कभी पहुंचे ही नहीं या फिर हमने उनको टोरेंट काल में आ कर के देखा। अंग्रेजी फ़िल्में भी हमारे यहाँ महीनों या सालों बाद चूतिये से हिंदी वाले नाम के साथ पहुँचती थी।

धोनी तुम्हारा हीरो है क्योंकि वो भी तुम्हारी तरह एक तथा-कथित छोटे से शहर रांची का है। तो एक बात ये भी बता दें तुमको कि धोनी आज जो भी है वो सिर्फ इसलिए नहीं है क्योंकि उसने बहुत मेहनत की है बल्कि वो यहाँ तक इसीलिए भी पहुँच पाया क्योंकि वो एक रांची एक ऐसे स्कूल में पढ़ पाया जो पहले भी IITians देने के लिए नामी था। वो ऐसे स्कूल के पढ़ा जहाँ क्रिकेट के स्पेशल कोच होते थे और उस स्कूल का अपना क्रिकेट स्टेडियम था। वो एक ऐसे स्कूल में था जो उस समय (और आज भी) बिहार (अब बिहार-झारखण्ड) के सबसे नामी स्कूलों में से एक था। जिसमे एडमिशन लेने के लिए दोनों स्टेट के हजारों बच्चे अभी भी फॉर्म भरते हैं और एडमिशन नहीं मिल पाता है। धोनी जिस मध्यम-वर्गीय परिवार से निकल कर यहाँ तक पहुँचा वो बेशक अद्वितीय कहानी है पर उसका शहर कहीं से छोटा नहीं था। धोनी झारखण्ड से था पर आदिवासी नहीं था।

हाँ माने कि तुम्हारा शहर दिल्ली, बम्बई या न्यूयॉर्क, लन्दन नहीं था पर जो भी मिला तुमको वो कम भी नहीं था। जहाँ पुरे स्टेट में बिजली सालों-साल नहीं आती थी वहां तुम्हारे शहर में शौकिया स्ट्रीट-लाइट्स होती थी। तुमलोग जब दिल्ली-बम्बई जाते हो एकदम धाक से अपना पटनिया, कनपुरिया स्वैग झाड़ते हो, लखनऊ वाली नवाबी दिखाते हो और हमलोग जैसे लोग अपने शहर का नाम बोलते हैं तो लोग नाम ही नहीं सुने होते हैं। ज्यादातर समय हमारे शहरों को गांव ही कह दिया जाता है।

इसीलिए भाई जितना मिला है तुमको उसमे खुश रहो, अपने माता-पिता के शुक्रगुज़ार रहो और ये छोटे शहर से होने का चुतियाप बंद करो।

No comments:

Post a Comment