Sunday, January 14, 2018

मुश्किल है अपना मेल प्रिये!

मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

तुम मेरे सपनों से भी सुंदर हो
मैं दाँत निपोरता क्रिस गेल प्रिये

मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

तुम इंग्लिश डिपार्टमेंट की टॉपर
मैं मुश्किल से होता पास प्रिये

तुम बर्गर हो मैकडोनाल्ड का
मैं तो कड़वा च्यवनप्राश प्रिये

तुम बिजनेसमैन की बेटी हो
मैं बेरोजगार बाप की आस प्रिये

तुम चकाचक दिल्ली मेट्रो सी
मैं गंदा भारतीय रेल प्रिये

मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

तुम सुकून हो सबकी आँखों का
मैं ऐड़ी में चुभता कील प्रिये

तुम डेवेलपमेंट हो शहरों का
मैं जंगल में छूटा भील प्रिये

तुम इंडस्ट्री हो करोड़ों की
मैं बिहार का चीनी मील प्रिये

तुम मनमौजी सागर के लहरों सी
मैं कसता हुआ नकेल हुए

मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

तुम टीवी सीरीज अमरीका की
मैं सास बहू का नाटक हूँ

तुम महानगर की फ्लाईओवर
मैं पुराना रेल का फ़ाटक हूँ

तुम विम्बलडन की प्राइज मनी
मैं बैडमिंटन का शटलकॉक प्रिये

तुम किसी मनोवैज्ञानिक सी
मैं बिजली का हूँ शॉक प्रिये

तुम जैसे पसंदीदा कोई पकवान
मैं कैंटीन की सड़ी हुई चाय प्रिये

तुम दुआएँ पीर-फ़क़ीरों की
मुझे तक़दीर की लगी है हाय प्रिये

तुम राजस्थान के महलों सी
मैं पिछड़ा हुआ बिहारी हूँ

तुम हो सुविधा अपोलो की
मैं गाँव में फैली महामारी हूँ

तुम मॉलों में शॉपिंग करती
मैं ग़रीब की फटी हुई चादर हूँ

तुम सभ्य, सुशील हो बचपन से
मैं तो बड़ों का अनादर हूँ

तुम सुंदर सिल्क की साड़ी हो
मैं लुंगी सा फटेहाल प्रिये

तुम शोभा हो अपने घर की
मैं जी का हूँ जंजाल प्रिये

तुम महँगा कोई शौक़ हो
मैं तो सीजन की सेल प्रिये

मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

~ डॉक्टर सुनील जोगी की कविता का मेरा वर्ज़न

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