Wednesday, February 14, 2018

प्रेम की कविता!

तुम्हारा प्रेम
मेरे लिए
कविताएँ पढ़ने का बहाना था

सुबह से प्रेम की
बीसों कविताएँ
पढ़ चुका हूँ

तुम्हारे प्रेम में डूबते-डूबते
कविताओं के सहारे तैरना
बहाना नहीं, आदत हो चुकी है

ये आदत
जो तुम लगा गयी थी
तुम्हारी नहीं, मेरी मृत्यु पर ख़त्म होनी है

टर्किश, फ्रेंच, स्पेनिश कवियों
को पढ़ रहा हूँ, ऐसा लगता है
सब तुम्हारे ही प्रेम में थे

मुझे याद आता है
कैसे मैंने तुम्हें कविताओं पर
लंबा लेख पढ़ाया था

दरअसल मेरी कोशिश
तुम्हें, तुम्हारी सारी ख़ूबसूरती के साथ
एक प्रेम कविता बना देने की थी

जिसमें तुमको ज़िंदा रहना था
जैसे मेरा प्यार ज़िंदा है
तुम्हारे चले जाने के बाद भी

मैंने कहा था
तुमसे ख़ूबसूरत
कोई कविता नहीं

मैंने प्रेम में
तुम्हें और ख़ूबसूरत बनाया
पर तुम्हें कविता नहीं बना पाया

~ हिमांशु

2 comments:

  1. गुज़रे लम्हें बन जाते है कविता कुछ कही कुछ अनकही... बेहतरीन सृजन
    सादर

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  2. तुम्हारे प्रेम में डूबते-डूबते
    कविताओं के सहारे तैरना
    बहाना नहीं, आदत हो चुकी है

    लाजवाब

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