Tuesday, October 8, 2024

जिसमें तुम नहीं हो!

एक कविता है
जो मैं लिखना चाहता हूँ
पर मुझसे लिखी नहीं जा रही है

हमारी आख़िरी मुलाकात की ये आख़िरी कविता
जिसमें मुझे उस मुलाकात के पहले और बाद कि बातें बतानी हैं
जिसमें हमारे बीच हुई सारी बातों के मायने समझने हैं
जिसमें मुझे तुमको जी भर के देख लेने की ख़ुशी बयान करनी है
जिसमें मुझे तुमसे लिपट कर रो नहीं पाने का अफ़सोस जताना है
जिसमें मुझे तुमसे कहना है कि तुमने बड़ा दिल दुखाया है मेरा
जिसमें मुझे मर जाना है पर फ़िर कभी तुमको नहीं देखना है
जिसमें अब मुझे कोई इंतेज़ार नहीं है
जिसमें मुझे पूरी ज़िन्दगी तुम्हारा इंतेज़ार करना है

एक और कविता है
जो मैं नासमझों की तरह
खुश हो कर लिखना चाहता हूँ

जिसमें मुझे अपनी आदत से परे, सब अच्छा-अच्छा सोचना है
जिसमें मुझे तुम्हारी छोटी-छोटी बातों में अपने लिए प्यार ढूँढना है
जिसमें मुझे याद करना है हमारे बीच हुई लंबी-लंबी चैट्स को
जिसमें मुझे तुमसे फ़िर से पूछना है मिलने के लिए
और तुमको फ़िर से कहना है कि तुमने पहले क्यूँ नहीं पूछा
जिसमें तुमको अगले महीने कह के अगले ही दिन मुझसे मिलने आना है
जिसमें तुमको एक साल में पहली बार मुझे फ़ोन करना है
जिसमें तुमको अपने ऑफिस से उस दिन जल्दी भागना है
जिसमें तुमको भी मुझसे मिलना है
जिस कविता में सब अच्छा होना है

एक आख़िरी कविता है
जो मैं इस यक़ीन में लिखना चाहता हूँ
कि तुम भी मुझसे प्यार करती हो

जिसमें तुमको मुझसे मिलने अपनी माँ के कपड़ों में आना है
जिसमें तुमने सोच रखा है कि हम अगर कभी मिलते तो कहाँ मिलते
जिसमें तुमको पता है कि मैं आज से पहले जो कुछ भी लिखता रहा हूँ सब तुम्हारे नाम का है
जिसमें तुमको अपना दिल साफ़ कर लेना है पिछली सारी बातें बता के
जिसमें तुमको मुझसे नज़र मिल जाने के डर से इधर-उधर देखना है
जिसमें तुमको मुझे मनाना है कि मैं तुमसे प्यार करना छोड़ दूँ
और जिसमें तुमको अंदर ही अंदर चाहना है कि ऐसा कभी ना हो
जिसमें तुमको मुझसे गले ना मिल पाने का अफ़सोस करना है
जिसमें तुम मुझे प्यार करती हो
और जिसमें तुम चाहती हो मैं कहता रहा हूँ कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ

तुम जैसा कठोर दिल होता तो शायद लिख लेता ये सारी कविताएँ

~ हिमांशु

प्रेम की कविता!

तुम्हारा प्रेम
मेरे लिए
कविताएँ पढ़ने का बहाना था

सुबह से प्रेम की
बीसों कविताएँ
पढ़ चुका हूँ

तुम्हारे प्रेम में डूबते-डूबते
कविताओं के सहारे तैरना
बहाना नहीं, आदत हो चुकी है

ये आदत
जो तुम लगा गयी थी
तुम्हारी नहीं, मेरी मृत्यु पर ख़त्म होनी है

टर्किश, फ्रेंच, स्पेनिश कवियों
को पढ़ रहा हूँ, ऐसा लगता है
सब तुम्हारे ही प्रेम में थे

मुझे याद आता है
कैसे मैंने तुम्हें कविताओं पर
लंबा लेख पढ़ाया था

दरअसल मेरी कोशिश
तुम्हें, तुम्हारी सारी ख़ूबसूरती के साथ
एक प्रेम कविता बना देने की थी

जिसमें तुमको ज़िंदा रहना था
जैसे मेरा प्यार ज़िंदा है
तुम्हारे चले जाने के बाद भी

मैंने कहा था
तुमसे ख़ूबसूरत
कोई कविता नहीं

मैंने प्रेम में
तुम्हें और ख़ूबसूरत बनाया
पर तुम्हें कविता नहीं बना पाया

~ हिमांशु

रात!

जैसे रात
दोगुनी कर देती है
दर्द, पीड़ा, तकलीफें
तन्हाईयाँ, अकेलापन
रुकावटें, मुश्किलें, मुसीबतें

ठीक उसी तरह
हर रात दुगना हो जाता है
तुम्हारे लिए मेरा प्यार
मेरे दिल में तुम्हारी हसरत
और मेरे जीवन में तुम्हारी जरूरत

~ हिमांशु

दुनिया भर तुम!

मैं
दुनिया भर की
औरतों से प्यार करने के बाद
तुम्हारे पास आया हूँ

दुनिया भर की वो
ख़ूबसूरत औरतें
जिनको देख कर
प्यार करने के अलावा
किसी को कुछ ना सूझे
जिनको देख कर
किसी भी कवि की कल्पना
प्रेम गीतों से भर जाए
जिनको देख कर
उनके प्रेम में
तड़ीपार हो जाने की सज़ा
भी मामूली जान पड़े

दुनिया भर की वो
समझदार औरतें
जिनसे ज़िरह कर
बार-बार उनसे
हार जाने का मन हो
जिनके जीत का आसमान
इतना बड़ा है कि
उसे ढ़कने को
नीला रंग कम पड़ जाए
जिनके बातों की
गहराई के आगे
आंखों की गहराई वाली
सारी कविताएँ ओछी लगने लगे

दुनिया भर की वो
कमाल की औरतें
जिन्हें इतना कुछ मिला
कि वो ना भी मिले
तो उनके आशिक़
ग़म ना मनाए
जिन्होंने इतना कुछ पाया
कि उनकी चाह में
ख़ुद भी खो जाएं
तो अफ़सोस ना रहे
जिनकी संघर्ष की कहानियों
के आगे अपने सच्चे प्यार
की दास्तान तक फ़ीकी लगे

दुनिया भर की वो
बेवकूफ़ औरतें
जिन्होंने इतना प्यार किया
कि अपने प्रेमी की आँखों में
झूठ नहीं पहचान सकीं
जिन्होंने अपने इंतेज़ार की
कोई समय-सीमा नहीं तय की
अपने प्रेमी के छोड़ जाने के बाद
जो प्यार में बिना शर्त,
बिना सवाल, बिना सोचे
अपने प्रेमी की बातों में आ गयीं

मैं
दुनिया भर की
अच्छी-बुरी औरतों
से, अच्छे बुरे तरीकों से
प्यार करने के बाद
तुम्हारे पास आया हूँ
बहुत कुछ जीत कर
तुम्हारे आगे सब कुछ
हार जाने आया हूँ
अपने होशोहवास,
अपनी सद्बुद्धि,
अपनी सारी कमाई,
सब कुछ खो देने आया हूँ

तुम्हारा
मेरे सामने होना
मेरे लिए दुनिया भर के
रुक जाने जैसा होता है
तुम्हारी काली आँखों
का मुझे देखना, इस दुनिया
से मेरी सारी शिकायतें
दूर कर देता है
उस एक क्षण में
जब सब जस का तस
रुका होता है
मैं दुनिया भर की
औरतों से कहता हूँ कि
मैंने तुम सबसे
प्यार किया
मगर ख़ाक में मुझे
मेरे सामने खड़ी
इस औरत के प्यार
में मिलना है
मुझे इस सूरज
की धूप में
पिघलना है

दुनिया भर की
वो सारी औरतें
मुझे तुम में
दिखती हैं और
मैं, तुम्हारे पास
तुम्हारी आँखों में
अपने लिए प्यार देखने आया हूँ

~ हिमांशु

Friday, November 23, 2018

अंत

'अंत' अपने आप में बड़ा हृदयविदारक शब्द है, साथ ही साथ इस शब्द से एक नकारात्मकता भी जुड़ी है. किसी प्रेमकहानी का अंत, पसंदीदा कविता का अंत, या जीवन का अंत, अंत हमेशा ही दिल तोड़ कर रख देता है. जिसकी शुरुआत सुखदायक होगी, उसके अंत का दुःखदायक होना निश्चित ही है.

जिन दिनों मैं कविता लिखा करता था, मैं कोशिश करता था कि अपनी हर कविता के अंत को उम्मीदों से भर दूँ. ऐसा नहीं था कि मैं ख़ुद उन दिनों उम्मीदों से भरा हुआ था या मेरे चारों ओर रौशनी थी. मैं नकारात्मकता के अँधेरे कुँए में बैठा था और मैं अपने ऊपर आसमान की ओर ताकने के बजाय दीवारों से सर टकराता था. पर मेरी 400 शब्दों की हताश कविता भी किसी के आ जाने की आस पर ख़त्म होती थी. शायद इसलिए कि इंतेज़ार कम दुःखदायक है अंत से. और शायद इसलिए कि मैं किसी और को उस कुएँ में नहीं धकेल सकता था, जिसने मेरी ज़िंदगी में अँधेरा किया था. मुझे अपने कविताओं की जिम्मेदारियों का एहसास था.

जिस दिन संसार के सारे कवि कविताएँ लिखना बंद कर देंगे, या जिस दिन उनके कविता लिखने पर रोक लगा दिया जाएगा, उस दिन भी कोई कहीं किसी वीराने में कविताएँ पढ़ेगा और अपने साथियों को सुनाएगा. कविताओं का यही महत्व है. कविताएँ इसीलिए अमर हैं. पर कविताएँ अकेली नहीं जीतीं. उनमें जीती हैं वो आवाज़ें जिन्हें कविताओं ने अनंत काल तक के लिए अपने भीतर समेट लिया होता है. वो आवाज़ें जिन्हें सुन कर आप सोचते हैं कि इस आशिक़ ने कितनी मोहब्बत की होगी अपने ज़माने में, या उस तानाशाह ने कितना ज़ुल्म ढ़ाया होगा अपने लोगों पर. जब तक कविताएँ सुनाई देंगी, ये आवाज़ें भी सुनाई देंगी. कविताओं के अंत का उम्मीदों से भरा होना इसीलिए जरूरी है. हारा हुआ व्यक्ति अगर कविताओं के अंत में भी हार जाएगा तो ये कविताओं की हार होगी. और इसीलिए जरूरी है कि हर कविता किसी उम्मीद पर अंत हो ताकि अंत-अंत तक किसी की हिम्मत न टूटे.

~ हिमांशु

Saturday, January 20, 2018

ब्लैक एंड व्हाइट!

I.

दुनिया बंट जानी चाहिए।
ब्लैक एन्ड व्हाइट में,
हाँ या ना में,
एकदम चाहिए और
बिल्कुल नहीं चाहिए में।

नैतिक-अनैतिक,
सही-गलत,
अच्छा-बुरा जैसे
मानदण्ड बीते दिनों की बातें है।
ये सब ख़त्म कर देने चाहिए।

शायद,
चलेगा,
पता नहीं यार,
ठीक है देखा जाएगा
जैसे भ्रम भी टूटने चाहिए।

"बीच का रास्ता कहीं नहीं होता"।
जो हैं उन्हें बंद कर देने चाहिए,
जो चाहते हैं, उनसे ज़वाब मांगा जाना चाहिए।
मध्य मार्ग के चक्कर में फंसा असहाय व्यक्ति
बचा लिया जाना चाहिए।

मन बनाना पड़ता है,
मन बना लिया जाना चाहिए।
रंगों का फ़रेब छोड़,
सब कुछ, तुम्हें भी
ब्लैक एंड व्हाइट में देखा जाना चाहिए।

II.

तुम्हारा हँसना ऐसा था जैसे
किसी ने रंगों से भरी
बाल्टी उड़ेल दी हो मुझ पर
और मैं तुम्हारी हँसी के रंगों में
सर से पांव तक रंग दिया गया होऊँ।

तुम्हारी हँसी के बदले तुम्हें
अपने प्यार से रंग देने की
मेरी सारी कोशिशें नाकाम गयी,
शायद इसलिए क्योंकि
तुम्हारे रह-रह के लाल होते
सफ़ेद चेहरे में जो सूरज वाली बात थी,
उसमें जो जिंदगियों में
जीवन भर देने की शक्ति थी,
उनमें जो रंगों को
रंगीन बनाने वाली रौशनी थी,
उनको मेरे रंग में रंग कर
धीमा नहीं होना था,
फ़ीका नहीं पड़ना था।

मेरी दोस्त, मेरा प्यार,
कल को ये दुनिया चाहे
जिस भी हिसाब से बंट जाए,
जिस भी तरीके से देखी जाए,
तुम, तुम्हारी हाँ या ना से परे,
तुम्हें क्या चाहिए और क्या नहीं
जैसे तमाम सवालों से अलग,
ब्लैक एंड व्हाइट में भी
उतनी ही खूबसूरत रहोगी
और हमेशा आसमान में रहोगी,
सूरज बन कर,
हर तरफ़ हँसी और रंग बिखेरती हुई।

तुम हमेशा आसमान में रहोगी,
सूरज बन कर
मुझसे दूर।

~ हिमांशु

Sunday, January 14, 2018

मुश्किल है अपना मेल प्रिये!

मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

तुम मेरे सपनों से भी सुंदर हो
मैं दाँत निपोरता क्रिस गेल प्रिये

मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

तुम इंग्लिश डिपार्टमेंट की टॉपर
मैं मुश्किल से होता पास प्रिये

तुम बर्गर हो मैकडोनाल्ड का
मैं तो कड़वा च्यवनप्राश प्रिये

तुम बिजनेसमैन की बेटी हो
मैं बेरोजगार बाप की आस प्रिये

तुम चकाचक दिल्ली मेट्रो सी
मैं गंदा भारतीय रेल प्रिये

मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

तुम सुकून हो सबकी आँखों का
मैं ऐड़ी में चुभता कील प्रिये

तुम डेवेलपमेंट हो शहरों का
मैं जंगल में छूटा भील प्रिये

तुम इंडस्ट्री हो करोड़ों की
मैं बिहार का चीनी मील प्रिये

तुम मनमौजी सागर के लहरों सी
मैं कसता हुआ नकेल हुए

मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

तुम टीवी सीरीज अमरीका की
मैं सास बहू का नाटक हूँ

तुम महानगर की फ्लाईओवर
मैं पुराना रेल का फ़ाटक हूँ

तुम विम्बलडन की प्राइज मनी
मैं बैडमिंटन का शटलकॉक प्रिये

तुम किसी मनोवैज्ञानिक सी
मैं बिजली का हूँ शॉक प्रिये

तुम जैसे पसंदीदा कोई पकवान
मैं कैंटीन की सड़ी हुई चाय प्रिये

तुम दुआएँ पीर-फ़क़ीरों की
मुझे तक़दीर की लगी है हाय प्रिये

तुम राजस्थान के महलों सी
मैं पिछड़ा हुआ बिहारी हूँ

तुम हो सुविधा अपोलो की
मैं गाँव में फैली महामारी हूँ

तुम मॉलों में शॉपिंग करती
मैं ग़रीब की फटी हुई चादर हूँ

तुम सभ्य, सुशील हो बचपन से
मैं तो बड़ों का अनादर हूँ

तुम सुंदर सिल्क की साड़ी हो
मैं लुंगी सा फटेहाल प्रिये

तुम शोभा हो अपने घर की
मैं जी का हूँ जंजाल प्रिये

तुम महँगा कोई शौक़ हो
मैं तो सीजन की सेल प्रिये

मुश्किल है अपना मेल प्रिये
ये प्यार नहीं है खेल प्रिये

~ डॉक्टर सुनील जोगी की कविता का मेरा वर्ज़न