तंग हो चला हूँ
तुम्हारी रिवाजों को मानते मानते।
खीज गया हूँ
अपने कर्मों का फल देख देख।
पर थका नहीं हूँ मैं,
विद्रोह करते करते,
तुमसे भी और खुद से भी।
तुमसे तो काफ़ी पहले
शुरू कर दिया था,
अब खुद से भी कर रहा हूँ।
सफ़लता से कदम नहीं चुमवाना है मुझे,
ना ही तुम्हारी छद्म वाहवाही चाहिए।
मुझे मेरे हिस्से का मेहनताना चाहिए।
संतोष से बड़ा कोई सुख नहीं कहते हैं,
पर मुझे मेरा असंतोष ही बरक़रार चाहिए।
: - #हिमांशु
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