Tuesday, January 24, 2017

मैं तुम्हारा कवि नहीं हूँ

मैं तुम्हारा कवि नहीं हूँ।
तुम्हारी ये उम्मीद मुझसे
फ़ालतू है
कि मेरी कविता तुम्हारे लिए नाचेगी।
ये मेरी कविता है।
पर तुम इसे मेरा भोंपू समझो।
मेरी ये कविता मेरे हिसाब से बोलेगी।
मैं चाहूंगा तो गधे के ढेंचू में लय ढूंढेगी,
या किसी बजबजाते नाले की तरह बदबू देगी।
पर ये तुम्हारे आगे नहीं नाचेगी।

खोखले उम्मीदों की लिपा-पोती भी मेरी मर्ज़ी से होगी।
और ठरक की मात्रा भी मैं ही तय करूँगा।
तुम्हारे बाल खुले रखने से मेरी कविता का
कोई लेना देना नहीं है।
तुम्हारे स्तनों के बीच फंसा लॉकेट,
मेरी कविता नहीं निकालेगी।
तुम चाहे जो कर लो,
मेरी कविता तुम्हारी मेहंदी का रंग गाढ़ा नहीं करेगी।
तुम चाहो तो नसें काट लो अपनी,
या रो-रो कर गला फाड़ लो अपना।
बता दो सबको मैं कितना गिरा हुआ था,
ले लो सबकी झूठी सहानुभूति
ख़्वाब पाल लो मुझे पछाड़ देने के।
मेरी कविता तुम्हारे सारे भ्रम तोड़ देगी।
मेरी कविता तुम्हारे आगे नहीं नाचेगी।
क्योंकि मैं,
तुम्हारा कवि नहीं हूँ।

:- #हिमांशु

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