Sunday, November 12, 2017

मैं असामान्य था!

मैं अब अपने ख़ात्मे की ओर अग्रसर हूँ। मैं अपने हिस्से का जल चुका; मैं अपने हिस्से की रौशनी जी चुका। अब धीरे-धीरे मेरे बुझ जाने का समय आएगा और मैं अपना अस्तित्व समेट के जा चुका होऊँगा। मेरे ख़त्म हो जाने के बाद जब मुझे याद किये जाने के लिये ऐसी कोई वज़ह नहीं बची होगी, मैं चाहता हूँ मुझे याद न किया जाए। मैं चाहता हूँ मैं जिस अंधेरे को ख़त्म करने की चाह में खुद ख़त्म हो गया वो बरकरार रहे, और मेरा वजूद और वो रौशनी जो मैंने खुद को जला कर पैदा की थी उस अंधेरे को ख़त्म करने के लिए, वो सब उसी अंधेरे में सिमट जाए। जब मैं जल रहा था, मैं कुछ भी हो जाने की क्षमता रखता था। मैं तुम्हारा सूरज हो सकता था, मैं जल कर भी असीमित सालों तक तुम्हें हर अंधेरे से बचा सकता था, मगर तुमने मेरा मुक़द्दर किसी सामान्य से तारे की तरह एकदिन जल कर गुमनामी में बुझ जाना तय किया। मैं तुम्हारे तय किये मुक़द्दर को ही अपना मुक़द्दर मान ख़त्म हो रहा हूँ।
मगर मैं चाहता हूँ जब अंधेरा मुझे पूरी तरह से खा चुका होगा तो तुम मेरी रौशनी का एक किरण संभाल कर रख लेना कहीं। जब अंधेरा तुम्हें भी खा जाएगा एकदिन, मैं चाहता हूँ मेरी रौशनी के उस एक किरण से तुम पूछो कि ऐसा क्यों हुआ कि इस अंधेरे से हम सब ही हार गए? क्या ये अंधेरा ही इस ब्रह्मांड का शाश्वत सत्य है?
मेरी रौशनी को किसी तरह का शाप था शायद। मैं जलता हुआ भी अंधेरे में ही था। मेरी रौशनी नकार दी गयी थी। मेरी रौशनी को भी अंधेरे का नाम दे दिया गया था। मैं अपने पूरे ज़ोर से जल कर भी अपने ऊपर लगा शाप नहीं हटा पाया था, अपनी रौशनी को रौशनी का नाम नहीं दिलवाया पाया था।
जब बुझते हुए तुम, अपने आख़िरी सवालात करोगे मेरी शापित रौशनी के संभाले गए उस आख़िरी किरण से, वो तुम्हें बताएगी कि कैसे मैं भी तुम्हारी तरह कुछ सवाल कर रहा था, कैसे मैं भी चीख़ रहा था, और जिस ज़वाब की तुम्हें अब दरकार है, मैं अपनी सारी उम्र जलता हुआ वही कह रहा था। तब मेरी सुनी नहीं गयी, मेरी रौशनी की तब अहमियत नहीं थी, क्योंकि तब तुम खुद रौशन थे और खुद को सूरज मान बैठे थे, तुम्हें लगा था तुम्हारी ऊर्ज़ा कभी ख़त्म नहीं होगी, अंधेरा तुम्हें कभी नहीं खायेगा। मेरी रौशनी की आख़िरी किरण तुम्हें बताएगी कि हर सूरज महज़ एक तारा है और एक दिन हर सूरज को हर आम तारे की तरह ही बुझ जाना है, इस अंधेरे को अपना मुक़द्दर मान लेना है। जैसे मैंने मान लिया था, तुम्हें भी मान लेना होगा। अंत में बस अंधेरा ही होगा, और कुछ नहीं।

मेरे रौशनी की आखिरी किरण तब कई फ़र्क पैदा कर देगी। तुम तुम्हारा सामान्य होना मान लोगे। मगर तब तुम्हें मेरे असामान्य होने का भी पता चल जाएगा। मैं सच में तुम्हारा सूरज होने की क्षमता रखता था। कभी ना ख़त्म होने वाला असीमित और असामान्य सूरज।

~ हिमांशु

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