Monday, October 24, 2016

दिलों का रोज़गार ❤❤

हम हैं कि मरे जा रहे हैं
उसकी एक हंसी देखने के लिए,
वो है कि लबों को
बेरोज़गार किये बैठी है।

हमारी बेकसी का सबब
तो हमारा इश्क़ है,
वो क्यूँ खुद को भी
तलबगार किये बैठी है।

हम ताक में रहे इस कदर
उन लबों की हंसी समेटने की,
ग़ौर ना कर पाये वो भी इश्क़ का
क़ारोबार किये बैठी है।

हमारी आँखें मशगूल रही
उस ग़ुलाबी मंज़र को देखने में,
उसकी नज़र भी किसी का
इंतेज़ार किये बैठी है।

हम पूछने चले जब
वज़ह उसकी उदासी की,
ख़ामोश रह कर भी हमसे शिकायतें
हज़ार किये बैठी है।

हमारी बाहों में टूट कर
उन लबों पर हँसी आई,
ये पगली तो हमसे बेइन्तहां
प्यार किये बैठी है।

- हिमांशु ❤❤

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