'अंत' अपने आप में बड़ा हृदयविदारक शब्द है, साथ ही साथ इस शब्द से एक नकारात्मकता भी जुड़ी है. किसी प्रेमकहानी का अंत, पसंदीदा कविता का अंत, या जीवन का अंत, अंत हमेशा ही दिल तोड़ कर रख देता है. जिसकी शुरुआत सुखदायक होगी, उसके अंत का दुःखदायक होना निश्चित ही है.
जिन दिनों मैं कविता लिखा करता था, मैं कोशिश करता था कि अपनी हर कविता के अंत को उम्मीदों से भर दूँ. ऐसा नहीं था कि मैं ख़ुद उन दिनों उम्मीदों से भरा हुआ था या मेरे चारों ओर रौशनी थी. मैं नकारात्मकता के अँधेरे कुँए में बैठा था और मैं अपने ऊपर आसमान की ओर ताकने के बजाय दीवारों से सर टकराता था. पर मेरी 400 शब्दों की हताश कविता भी किसी के आ जाने की आस पर ख़त्म होती थी. शायद इसलिए कि इंतेज़ार कम दुःखदायक है अंत से. और शायद इसलिए कि मैं किसी और को उस कुएँ में नहीं धकेल सकता था, जिसने मेरी ज़िंदगी में अँधेरा किया था. मुझे अपने कविताओं की जिम्मेदारियों का एहसास था.
जिस दिन संसार के सारे कवि कविताएँ लिखना बंद कर देंगे, या जिस दिन उनके कविता लिखने पर रोक लगा दिया जाएगा, उस दिन भी कोई कहीं किसी वीराने में कविताएँ पढ़ेगा और अपने साथियों को सुनाएगा. कविताओं का यही महत्व है. कविताएँ इसीलिए अमर हैं. पर कविताएँ अकेली नहीं जीतीं. उनमें जीती हैं वो आवाज़ें जिन्हें कविताओं ने अनंत काल तक के लिए अपने भीतर समेट लिया होता है. वो आवाज़ें जिन्हें सुन कर आप सोचते हैं कि इस आशिक़ ने कितनी मोहब्बत की होगी अपने ज़माने में, या उस तानाशाह ने कितना ज़ुल्म ढ़ाया होगा अपने लोगों पर. जब तक कविताएँ सुनाई देंगी, ये आवाज़ें भी सुनाई देंगी. कविताओं के अंत का उम्मीदों से भरा होना इसीलिए जरूरी है. हारा हुआ व्यक्ति अगर कविताओं के अंत में भी हार जाएगा तो ये कविताओं की हार होगी. और इसीलिए जरूरी है कि हर कविता किसी उम्मीद पर अंत हो ताकि अंत-अंत तक किसी की हिम्मत न टूटे.
~ हिमांशु
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